मदिरा सवैय्या छंद सुग्घर शब्द विचार परोसव हाँथ धरे हव नेट बने। ज्ञान बतावव गा सच के सब ला सँघरा सरमेट बने। झूठ दगा भ्रम भेद सबे झन के मुँह ला मुरकेट बने। मानस मा करतव्य जगै अधिकार मिलै भर पेट बने। रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर" 28/08/2017
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सुखदेव सिंह अहिलेश्वर "अँजोर"के दोहे [8/21, 2:58 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दोहा अँगना बारी डीह मा,या डोली के मेंड़। भुँइया के सिंगार बर,सिरजालौ दू पेंड़। गरुवा के दैहान मा,या तरिया के पार। झाड़ लगावत साठ जी,रूँधौ काँटा तार। बड़ महिमा हे पेंड़ के,कोटिन गुण के खान। कर सेवा नित पेंड़ के,खच्चित हे कल्यान। -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर "अँजोर" [8/21, 3:18 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: मोर परिचय:-- बेटा दाऊलाल के,मातु सुमित्रा मोर। नाव धरे सुखदेव सिंह,मोरे बबा अँजोर। देख मया माँ बाप के,उँकर मया के डोर। आँखी के सँउहे रखैं,निकलन नइ दैं खोर। स्कूल रहै ना गाँव मा,घर मा ददा पढ़ाय। कोरा मा बइठार के,सिलहट कलम धराय। बूता करवँ पढ़ाय के,गुरुजी परगे नाँव। झिरना के भंडार मा,गोरखपुर हे गाँव। लिखत रथवँ मन भाव ला,नान्हे बुद्धि लगाय। होय कृपा सतनाम के,सो गुरुदेव मिलाय। करिन निगम गुरुदेव मन,बिनती ला स्वीकार। फोन करिस सर हेम हा,होइस खुशी अपार। पाये हवँ सानिध्य ला,तरसत हवयँ हजार। जनकवि कोदूराम के,सूरुज अरुण कुमार। सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
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[8/19, 5:27 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दुर्मिल सवैय्या अँगना परछी घर द्वार सहीं,नित अंतस निर्मल होवत हे। पर के धन जाँगर देखत मा,मन मा इरसा नइ होवत हे। दुख मा जब नैन निगाह परे,दुखिया बन अंतस रोवत हे मनखे तन मा तब जान सखा,जिनगी सत काज सिधोवत हे। -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर" 🙏🏻सुखदेव सिंह अहिलेश्वर [8/19, 5:28 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दुर्मिल सवैय्या मँय जानत हौ लबरा मनखे,बिन कारन झूठ सुनात रथे। ठलहा रहिथे ठलहा फिरथे,ठलहा मउका ल भुनात रथे। घर मा नइहे कुछु काम बुता,तइसे मुँह गोठ फुनात हे। सच ला धरके अगुवाय नही,मन मा चुगली उफनात रथे। -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर "अँजोर" 19/08/2017
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'"हमर बहू"' (विष्णु पद छंद) कहाँ जात हस आतो भैया,ले ले सोर पता। अब्बड़ दिन मा भेंट होय हे,का हे हाल बता। घर परिवार बहू बेटा मन,कहाँ कहाँ रहिथें। नाती नतनिन होंही जेमन,बबा बबा कहिथें। अपन कहौ हमरो कुछ सुनलौ,थोकुन बइठ जहू। बड़ सतवंतिन आज्ञाकारी,हमरो हवय बहू। बड़े बिहनहा सबले पहिली,भुँइ मा पग धरथे। घर अँगना के साफ सफाई,नितदिन हे करथे। नहा खोर के पूजा करथे,हमर पाँव परथे। मन मा सुग्घर भाव जगाथे,पीरा ला हरथे। हमर सबो के जागत जागत,चूल्हा आग बरे। दुसरइया तब हमर तीर मा,आथे चाय धरे। पानी गरम नहाये खातिर,मन चाहा मिलथे। हमर खुशी के कहाँ ठिकाना,तन मन हे खिलथे। जल्दी आथे ताते जेवन,नइतो देर लगे। बुढ़त काल मा अइसे लगथे,जइसे भाग जगे। बेटी मनके मान बढ़ावै,नवा जघा ढल के। हे संस्कार ददा दाई के,बोली ले झलके। अइसन बहू पाय के काबर,होवय गरब नहीं। इँखर आय ले घर दुवार मा,गड़गे दरब सहीं। छंदकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर" गोरखपुर,कवर्धा
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मजनू पन(आल्हा छंद) फोन लगाबो चल थाना मा,तभे समझ मा आही बात। छूट जही जम्मो मजनू पन,परही बने पुलिस के लात। दुर्राये मा घलो लपरहा,मुँह नइ टारय सँउहे आय। निच्चट नाक कान खाले हे,फोकट हमर तीर मेर्राय। आनी बानी के गुठियाथे,लाज सरम ला दे हे बेंच। अच्छा होतिस साँझ रात ले,एखर मुरकुटिया जै घेंच। रोजे आय जाय के बेरा,हमला करत रथे परसान। भूत रसे कस घूमत रहिथे,मरजादा के नइहे ज्ञान। हरकइया बरजइया नइहे,कोनो नही धरैया कान। दाई बहिनी ला नइ जानै,नइ जानै कखरो सम्मान। असने मनके जनम धरे ले,बाढ़त हे भुँइया के भार। चीर हराथे मरजादा के,प्रेम दया खावत हे मार। आधा इँखरे डर बेटी ला,छोड़ावै शिक्षा इसकूल। उज्जर सपना नइ देखन दै,बनगे हें आँखी के धूल। छंदकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर "अँजोर" गोरखपुर,कवर्धा 03/08/2017