कुण्डलिया छंद

होवै भेंट सियान सँग,सुग्घर रीत निभाव।
दूनो हाँथ म पाँव ला,छू के माथ नवाव।
छू के माथ नवाव,पूछ लौ कुशल क्षेम ला।
दू ठन गुरतुर गोठ,बाँट लौ मया प्रेम ला।
सुग्घर नेक विचार,चित्त ला माँजै धोवै।
ले लौ जी आशीष,उँखर ले मिलना होवै।

रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
              गोरखपुर,कवर्धा
              03/09/2017

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