हे दाई शेरावाली
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                          "त्रिभंगी छंद"

हे आदि भवानी,जग कल्यानी,हे जगजननी जग माता।
आये नवराती,दिन अउ राती,जोत जले जग मग माता।
सेउक जस गावैं,फूल चढ़ावैं,राखे हावँय जग राता।
किरपा बरसावौ,भाग जगावौ,आस करै पावन नाता।

कइसे करही मन,जुच्छा दर्शन,लाये हँव फुलवा घर ले।
हे दुर्गा दाई,हे महमाई,जम्मो दुख पीरा हर ले।
हे अम्बे गौरी,हे खल्लारी,हे चंडी हे कंकाली।
करके उजियारा,हर अँधियारा,हे दाई शेरावाली

                                -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
                                         गोरखपुर,कवर्धा

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