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"रोला छंद" ******** अब तो आँख उघार,देख काहे सच्चाई। नो हँन भूत परेत,हमू मनखे यन भाई। अउ कतका दिन तोर,नैन ला मूँदे रहिबे। अउ कै जुग कै काल,हमर जिनगी ला डहिबे। अउ कै दिन कै वर्ष,समझिहौ हमला कचरा। अब तो सच स्वीकार,लगावौ झन अब ढचरा। छोड़व टारव दोख ,ढोंग ओंछी करनी के। करनी अइसन होय,रहै ना डर भरनी के। रचनाकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"                  
जाड़ ****                    "चकोर सवैया छंद" कातिक के महिना धरके अपने सँग मा घर लावय जाड़। अग्घन हा बनगे जस निंदक कान भरै भड़कावय जाड़। पूस घलो सुलगावत हे बनके कुहरा गुँगवावय जाड़। काँपत ओंठ ल देख परै तब अंतस मा सुख पावय जाड़।                                      घूमत हे लइका उघरा उँहला नइतो डरुहावय जाड़। कोन जनी बुढ़वा मन के मन ला कइसे नइ भावय जाड़। देखत हे कमिया कर जाँगर मूड़ ल ढाँक लुकावय जाड़। काम बुता नइहे कुछु हाँथ त रोज अलाल बनावय जाड़। रचनाकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
"करके नमन गुरुदेव ला" (हरिगीतिका छंद) रहिलौ सदा सानिध्य मा,करके नमन गुरुदेव ला। उँखरे कृपा आशीष ले,दुरिहा करौ मन भेव ला। दाई ददा घर द्वार ये,समझौ कुटुम परिवार ये। जिनगी फँसे मजधार ता,खे के नकाथे पार ये। होथे नमन पहिली सदा,गुरुदेव के भगवान ले। रसता धराथे साँच के,भरथे गगरिया ज्ञान ले। जिनगी सुफल समरथ बनै,कर पोठ अंतस नेव ला। रहिलौ सदा सानिध्य मा,करके नमन गुरुदेव ला। गुरुदेव के आशीष ला,अमरित बरोबर जान लौ। उँखरे दिये सतज्ञान मा,सच झूँठ ला पहिचान लौ। जावौ शरण गुरुदेव के,मन भेद गाँठी छोरिहैं। सद्भाव मन मा जागही,परमातमा से जोरिहैं। गुरु के शरण मा जाय बर,काबर अगोरे छेंव ला। रहिलौ सदा सानिध्य मा,करके नमन गुरुदेव ला। रचनाकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"        गोरखपुर,कवर्धा