संदेश

2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
चौपाई छंद- श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर ""मँय घासी अँव"" धरम करम बिन दिन नइ नाकय।मनखे एला ओला चाकय। गुरु घासी सुरता मा आवय।सब संतन ला ज्ञान लखावय। सुन आ संत बइठ सुसताले।मँय घासी अँव बोल बताले। मै नइ कहँव भजे बर मोला।मै नइ कहँव अमर हे चोला। माटी ले सिरजित हे काया।माटी हे जग माटी माया। इक दिन माटी मा मिल जाना।फिर काहे मनुवा इतराना। बड़ पबरित हे मानुष जोनी।सत बीजा के कर ले बोनी। जात धरम के झन दे ताना।मनखे मनखे एक समाना। पुरुष पिता सतनाम सार हे।जीव ब्रह्म जग सत अधार हे। ज्योति पुरुष के नाम सुमर ले।इहाँ उहाँ बर गठिया धर ले। मान पुरुष के सेत निशानी।झन कर मनुवा आनाकानी। सुनले गुरु के अमरित बानी।होही धन्य जनम जिनगानी। सोना चाँदी माल खजाना।नइ लागय रुपिया ना दाना। अंतस मा सत श्रद्धा धर ले।हाथ जोर सतनाम सुमर ले। नाथ इहें अउ माथ इहें हे।सत कारज बर हाथ इहें हे। समय रहत नेकी नित कर ले।जियते मा भँवसागर तर ले। तर्क करन जानन तब मानन।चौरासी फाँसा पहिचानन। दाना का हे कोन शिकारी।संत सुजन जन कर चिन्हारी। सरसुधिया के सुध ला पा के।ठग-जग बइठे हाट लगाके। चमक-दम
"निर्धनता" निर्धनता के खेल निराले। तुम भी देखो ऊपर वाले। भूख गरीबी की लाचारी। उम्मीदों पर पड़ती भारी। कभी जिन्दगी जीत न पाई, लड़ी मगर निश्चित ही हारी। मजबूरी बच्चों के सपने। तोड़ रही हाथों से अपने। पहले खोजे भोजन पानी। या गरीब खोजे छत छानी। पड़े पैर मे दुख के छाले। तुम भी देखो ऊपर वाले। झुग्गी मे  बेहाल सभी हैं। छत छानी दीवाल कभी है। लगा बरसने जब भी बादल, सिर ऊपर तिरपाल तभी है। बच्चों को भगवान भरोसे, छोड़ गया वह इत्मिनान से। रखते हों प्रभु पास भले ही, पर बच्चे हैं दूर ज्ञान से। घोर विपत्ती बादल काले। तुम भी देखो ऊपर वाले। स्वप्न अधूरे पक्के कच्चे। देख रहे गरीब के बच्चे। कहलाता भगवान रहा है। बचपन कूड़ा छान रहा है। गायब हुआ पीठ से बस्ता। भूल गया शाला का रस्ता। अब दिन कूड़े मे कटते हैं। बाल राख मे सन लटते हैं। कहते कोई कहाँ?नहाले। तुम भी देखो ऊपर वाले। घिरा हुआ बैठा कूड़े से, हाथों मे कूड़ा कचरा है। बचपन ढूंढ रहा क्या मोती, जो इस कूड़े मे पसरा है। नन्हे हाथों मे क्यों उसके? कापी पुस्तक पेन नही है। बचपन चढ़ विद्यालय जाये, घर के बा
"दीया जलाहूँ" दाई... दीया जलाहूँ मोला गिनती ले एक ठन जादा दीया दे देबे। गुरुजी कहिथे दीया अउ ज्ञान अँजोर करथे। दीया बाहिर अँजोर करथे  अँधियारी ला हरथे। ज्ञान भीतर अंतस म अँजोर करथे अज्ञानता के अँधियारी ल हरथे। दीया पर्व ज्ञान पर्व आय। दीया दान ज्ञान दान आय। एक ठन दीया ले अनगिनत दीया जलाय जा सकथे। ज्ञान घलो सरलग बगराय जा सकथे। बचपन विद्यार्थी बन विद्यालय म आथे ज्ञान पाथे ज्ञानवान बनथे, तहान सेवा कार्य म लग जथे। उपयोगी सामान बनाथे रेंगत दउड़त जिनगी बर। बिजली,बल्फ छोटे अउ बड़े मशीन,अनगिन चारपाई, जीवन रक्षक दवाई, जरूरी सामान अतका बादर भर बगरे सुकवा, चुरकी भर जुवाँड़ के लाई जतका। दाई.... घठौंदा मा पानी बर गाँव के सबो देवधामी बर पुरखा बर शमसान मा गउ के गउठान मा पुरखौती डीह मा अन्न देवइया महतारी खेती बर पाँच दीया पंच तत प्रकृति बर पुरुषपिता के नाम बर सत के निशानी जैतखाम मा दीया जलाहूँ लहुटत खानी सुरता करके अपन विद्यालय के दुवारी म जिहाँ ले निकले ज्ञान के प्रकाश अनगिनत अंतस मा अँजोर करत आवत हे, दाई...उहाँ एक ठन दीया जलाहू
सुखदेव सिंह अहिलेश्वर के जयकारी छंद           ''मतदान'' देश करत हावय अह्वान। बहुत जरूरी हे मतदान। मतदाता बनही हुँशियार। लोक स्वप्न होही साकार। लोकतंत्र के जीव परान। मतदाता मत अउ मतदान। मत दे बर झन छूटँय लोग। कहिथे निर्वाचन आयोग। उम्मर हो गय अठरा साल। मतदाता बन करव कमाल। वोटिंग तिथि के रखलौ ध्यान। खच्चित करना हे मतदान। काज जरूरी हे झन टार। वोट ,बूथ मा जा के डार। सीयू बीयू वी वी पेट। बिस्वसनी चौबिस कैरेट। एक बात के राखन ध्यान। शान्ति पूर्ण होवय मतदान। पाछू करबो बूता आन। पहिली करना हे मतदान। अपन व्यवस्था करके जान। जब दे बर  जावन मतदान। पाँच साल मा आय चुनाव। सुग्घर जनमत दे लहुटाव। रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर मुकाम-गोरखपुर कवर्धा छत्तीसगढ़ मोबाइल-9685216602
          -सतधारी गुरु अमर दास बाबा- गुरु घासी के प्रथम पुत्र गुरु,अमर दास बाबा। सतलोकी सत अमरित हावय,तुँहर पास बाबा। माता सफुरा के अमरु तँय,आँखी के तारा। तुँहर दरश बर आय हवँय सब,गाँव शहर पारा। बहिन सहोद्रा अड़गड़िहा गुरु,आगर गोसाई। राजा बालक दास बीर के,तँय बड़का भाई। बचपन ले सतज्ञान लखाये,बन तपसी भारी। सप्त-ऋषी के संगत पाये,सतगुरु सतधारी। तेलासी भंडारपुरी मा,महिमा दिखलाये। मृत बछिया सँउहे जी उठगे,सत अमरित पाये। तट म बसे शिवनाथ नदी के,अमर धाम चटुवा। सतलोकी सत रीत निभाये,सफुरा के बटुवा। पान सुपारी सत जल नरियर,दीया हाथ धरे। सब संतन के सँग मा गुरुजी,चरन अँजोर परे। रचनाकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"                      गोरखपुर,कवर्धा(छ.ग.)                           27/07/218        
"तुँहर अमर बलिदान ला" भारत माँ के रक्षा खातिर,अर्पित जीव परान ला। बिरथा नइ जावन दन साहब,तुँहर अमर बलिदान ला। नजर गड़े हे बैरी मनके,सोन चिरैया ठाँव मा। किसिम किसिम के बिख घोरत हें,शहर नगर अउ गाँव मा। पूरा नइ होवन देवन हम,डाह भरे अरमान ला। बिरथा नइ जावन दन साहब,तुँहर अमर बलिदान ला। कायर चोर सहीं हरकत हे,छुप छुप करथें वार ला। सँउहे मा आके लड़तिन ता,पातिन मुँह के भार ला। मुश्की बँधना बाँध ठठाबो,पा जाबो बइमान ला। बिरथा नइ जावन दन साहब,तुँहर अमर बलिदान ला। हँसत हँसत झेले हव गोली,सँउहे सीना तान के। बहत लहू मा चुपरे हावव,माटी रणमैदान के। जब तक जीबो गावत रहिबो,तुँहर अमर जश गान ला। बिरथा नइ जावन दन साहब,तुँहर अमर बलिदान ला। रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"              गोरखपुर,कवर्धा(छ.ग.)
रूप घनाक्षरी छंद           "सुजानिक किसान" मन कर्म बचन से,गरियार मनखे ला, सत कुँड़ अघुवा चलाये बाबा घासी दास। अधर म नाँगर तुतारी घलो अधर मा, अधर ले ज्ञान अलखाये बाबा घासी दास। हिरदे के धरती मा,सतनाम शब्द बीज, सत जल सिंच के उगाये बाबा घासी दास। करे कारज महान,बाबा ज्ञानी गुनवान, सुजानिक किसान कहाये बाबा घासी दास। -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"              गोरखपुर,कवर्धा              03/07/2018
  विधा-आल्हा छंद                                    "'टीम उमंग'" अन्तर्मन के स्वप्न चित्र मे,कुछ तो भर पायेंगे रंग। इसी लक्ष से प्रेरित उर्जित,संकल्पित है टीम उमंग। अवमूल्यन की भेंट चढ़ रही,सरकारी शिक्षण संस्थान। कब तक यूँ अवनत देखेंगे,शिक्षक की गरिमा सम्मान। निश्छल बचपन के स्वप्नो ने,चिंतन को दिखलाया राह। कुछ तो स्वप्न सँवारूँ मै भी,शिक्षक के मन जागा चाह। देख समर्पण श्रम शिक्षक के,हर कोई रह जाये दंग। इसी लक्ष से प्रेरित उर्जित,संकल्पित है टीम उमंग। पहली सीढ़ी पहुँचाती है,कदमों को मंजिल के द्वार। कठिन परिश्रम सद्प्रयास से,होते है सपने साकार। मै तुम मिलकर हम बन जायें,हम मे फिर सारा संसार। छूलो आसमान को फिर तो,या जावो सागर के पार। एक एक ग्यारह होते है,जब मिलकर चलते है संग। इसी लक्ष से प्रेरित उर्जित,संकल्पित है टीम उमंग। रचनाकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"                      गोरखपुर,कवर्धा                       27/06/2018   
जलहरण घनाक्षरी                    "चुनई बछर" रैली हड़ताल बर,गोंदली पताल बर, बजे खूब गाल तब जान चुनई बछर। मीडिया के पटल मा,जनता के हालत के, उठय सवाल तब जान चुनई बछर। जनता हा गोठियाय,नेता कर एड़ी खाय, होवय कमाल तब जान चुनई बछर। जनता निहाल होय,माँगय रूमाल जब, मिले साड़ी साल तब जान चुनई बछर। -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"              गोरखपुर,कवर्धा               16/06/2018
  सार छंद ********                     "पौधा एक लगाऊँ" आवो बैठो पास तुम्हे मै,मन की बात बताऊँ। मेरा मन है इस बारिश में,पौधा एक लगाऊँ। रूधूँ तार सहेजूँ उसको,अपना मित्र बनालूँ। खातू माटी पानी देकर,बच्चे जैसा पालूँ। संग पवन के नन्हा पौधा,खुश होके लहराये। मेरा मन भी उसके सँग सँग,झूमे नाचे गाये। जब जब निकले शाखा पत्ती,गीनूँ और बताऊँ। मेरा मन है इस बारिश मे,    पौधा एक लगाऊँ। आसमान को छूने शाखा,बाहों को फैलाये। शाखाओं मे रंग बिरंगे,फूल खिले मुसकाये। फल से लदी डालियाँ उसकी,नम्र भाव दिखलाये। सब कुछ देकर सहज भाव से,परमारथ सिखलाये। यही प्रवृत्ती अपने भीतर,मै भी आज जगाऊँ। मेरा मन है इस बारिश मे, पौधा एक लगाऊँ। उड़ती चिड़िया थक कर उसमे,बैठ जरा सुसताये। बैठ पथिक छाँया मे उसके,जीवन का सुख पाये। दूर प्रदूषण को करने की,किस्सा बहुत पुरानी। मै  भी साथ रहूँगा उसमे,  अपने मन है ठानी। मन की इच्छा पूरी होगी,  चैन तभी मै पाऊँ। मेरा मन है इस बारिश मे,पौधा एक लगाऊँ। रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर" शिक्षक पंचायत-शा.पू.मा.शाला,मक्के                  गोरख
हे जग के जननी *************                     "विष्णुपद छंद" जुग जुग ले कवि गावत हावँय,नारी के महिमा। रूप अनूप निहारत दुनिया,   नारी के छवि मा। प्यार दुलार दया के नारी,अनुपम रूप धरे। भुँइया मा ममता उपजाये,जम के त्रास हरे। जग के खींचे मर्यादा मा,    बन जल धार बहे। मातु-बहिन बेटी पत्नी बन,सुख दुख संग सहे। रूढ़ी वादी मीथक टोरे, नव प्रतिमान गढ़े। नारी के परताप कृपा ले,जीवन मूल्य बढ़े। धरती ले आगास तलक मा,  गूँजत दल बल हा। देख धमक नारी के दुबके,धन बल अउ कल हा। नारी क्षमता देख धरागे,       अँगरी दाँत तरी। जनम जनम के मतलाये मन,होगे आज फरी। रचनाकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"                       गोरखपुर,कवर्धा                       08/03/2018
समरसता के फाग ***************                         "सरसी छंद" ढोल नँगाड़ा बाजै गावन,समरसता के फाग। भेद भरम के परे नींद ले,मनखे जावय जाग। रुखराई ला काट होलिका के सँग देथन बार। बुरा न मानो होली कहिके,पीथन झारा झार। मंद माँस पी खा बउराथन,     ए कइसे संस्कार। कारज के पहिली कारज ला,लेवन छाँट निमार। अंतस के बन कचरा बारै,खोजन अइसे आग। भेद भरम के परे नींद ले,  मनखे जावय जाग। रंग लगइ हे तभे सार्थक,नइ खिसियाइस गाल। नहितो बस टीका भर धारन,सँगवारी के भाल। खोर गली मा भड़भड़ भड़भड़,उरहा धुरहा चाल। आँखी कान नाक बरकाके,     छींचन रंग गुलाल। कुमता के दुरमित ला टारन,छेड़ सुमत के राग। भेद भरम के परे नींद ले,   मनखे जावय जाग। दूअर्थी गाना झन बाजय,    होवय झन हुड़दंग। लइकन सीखै झन सियान ले,ये अलकरहा ढंग। होली आथे सम रस लाथे,ना की मदिरा भंग। प्रेम भाव ले भिंजै तन मन, होली के रस रंग। लाड़ू सही बँधाजै सुनता,धरन सुमत के पाग। भेद भरम के परे नींद ले,मनखे जावय जाग। रचनाकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"                       गोरखपुर,कवर्धा