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सुखदेव सिंह अहिलेश्वर के दोहे दोहा पच्चीसी विषय-पर्यावरण प्रकृति संग परिवेश को,हम सबसे है आस। स्वच्छ रहे पर्यावरण,मिल कर करें प्रयास।1। उस घर मे आते नही,डॉक्टर वैद्य हकीम। जिस घर का पर्यावरण,देखें तुलसी नीम।2। पवन धरा जल स्वच्छ है,गली सड़क है साफ। खुश हो कर पर्यावरण,दोष करेंगे माफ।3। कहता है पर्यावरण,खेतों मे हो मेंड़। फसल लगे हर खेत में,मेड़ों मे हो पेंड़।4। हाँफ रहा मेरा शहर,खाँस रहे हैं लोग। पर्यावरण बिगाड़ कर,ये कैसा सुख भोग?5। खुद का ही पर्यावरण,खुद ही रहे बिगाड़। मानव को क्या हो गया?जग को करे कबाड़।6। गौण हुआ पर्यावरण,उत्तम स्वारथ भोग। फिर भी तृषा अशांत है,कैसा है यह रोग?7। जहरीला फल जल फसल,हुआ विषैला अन्न। क्या होगा पर्यावरण?यह सब देख प्रसन्न?8। गाँव शहर मे हो रहा,साफ सफाई नित्य। पर्यावरण प्रसन्न है,अवलोकित कर दृश्य।9। भूमि प्रदूषित हो रही,हवा प्रदूषित होय। दूषित है पर्यावरण,प्रकृति संग कवि रोय।10। शहर नगर मे देख कर,बड़े बड़े उद्योग। भ्रम मे है पर्यावरण,औषधि है या रोग।11। ना देखें केवल नफा,औद्योगिक संस्थान। आस पास पर्यावरण,उन पर भी दें ध्यान।12। प