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मनखे अनजान कहाँ हे मनखे के वर्ण भेद के पहिचान कहाँ हे। पथरा म खोजे प्रान रे तोर ज्ञान कहाँ हे। मनखे बिसर डरे रे तोरे मान कहाँ हे। पुरखा ददा दाई सहीं भगवान कहाँ हे। सतिया धरे सेवा सहीं ईमान कहाँ हे। सद्भाव दया ले बड़े बिरवान कहाँ हे। महिनत ले बढ़के राष्ट्र के निर्माण कहाँ हे। ये बात ले मनखे घलो अनजान कहाँ हे। रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
हे शिक्षक शिक्षकीय कार्य सिर्फ सोमवार से शनिवार नही है। अध्ययन-अध्यापन प्रति-पल है करार-ए-दस से चार नही है। विद्यालय से तेरा वास्ता तो जीवन के बाद भी है मेरे आदर्श, शिक्षकीय कर्म पुण्य तपस्या है रविवार का इन्तिजार नही है। रचना-अहिलेश्वर सुखदेव गोरखपुर कबीरधाम(छ.ग.)
सुखदेव सिंह अहिलेश्वर के दोहे दोहा पच्चीसी विषय-पर्यावरण प्रकृति संग परिवेश को,हम सबसे है आस। स्वच्छ रहे पर्यावरण,मिल कर करें प्रयास।1। उस घर मे आते नही,डॉक्टर वैद्य हकीम। जिस घर का पर्यावरण,देखें तुलसी नीम।2। पवन धरा जल स्वच्छ है,गली सड़क है साफ। खुश हो कर पर्यावरण,दोष करेंगे माफ।3। कहता है पर्यावरण,खेतों मे हो मेंड़। फसल लगे हर खेत में,मेड़ों मे हो पेंड़।4। हाँफ रहा मेरा शहर,खाँस रहे हैं लोग। पर्यावरण बिगाड़ कर,ये कैसा सुख भोग?5। खुद का ही पर्यावरण,खुद ही रहे बिगाड़। मानव को क्या हो गया?जग को करे कबाड़।6। गौण हुआ पर्यावरण,उत्तम स्वारथ भोग। फिर भी तृषा अशांत है,कैसा है यह रोग?7। जहरीला फल जल फसल,हुआ विषैला अन्न। क्या होगा पर्यावरण?यह सब देख प्रसन्न?8। गाँव शहर मे हो रहा,साफ सफाई नित्य। पर्यावरण प्रसन्न है,अवलोकित कर दृश्य।9। भूमि प्रदूषित हो रही,हवा प्रदूषित होय। दूषित है पर्यावरण,प्रकृति संग कवि रोय।10। शहर नगर मे देख कर,बड़े बड़े उद्योग। भ्रम मे है पर्यावरण,औषधि है या रोग।11। ना देखें केवल नफा,औद्योगिक संस्थान। आस पास पर्यावरण,उन पर भी दें ध्यान।12। प
सतपथ दर्पण दिखलाऊँ ना मै दलित कहाने वाला,ना मै हरिजन कहलाऊँ। ये हूँ वो हूँ कहकर मिथ्या,ना ही मन को बहलाऊँ। मानव मानव एक बराबर,था भी है भी और रहेगा, संविधान श्रीमुख जीवन को सतपथ दर्पण दिखलाऊँ -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर     गोरखपुर कबीरधाम
"वाट्सएप वीर" चढ़ते रोज कमानों मे जन मन भेदक उन तीरों को। अपने ही धुन मे बजते उन झाँझ मृदंग मँजीरों को। बातों ही बातों मे सब कुछ पा लेना जो चाह रहे, आओ नमन करें हम ऐसे वाट्सएप के वीरों को। -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर     गोरखपुर,कबीरधाम
लावणी छंद-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर शीर्षक-दाई जेखर अँचरा के छँइहा मा,उपजे जुग जिनगानी हे। काबर आज उही दाई के,मन अँखियन मा पानी हे। जेखर अँगरी धरके बचपन,पहली पाँव उचाइस हे। उच्चारिस माँ शब्द कण्ठ ले,कुलकिस रेंगिस धाइस हे। जेखर किरपा उमर जवानी,समझिस का छत छानी हे। काबर आज उही दाई के,मन अँखियन मा पानी हे। कहाँ छुपे हस राज दुलारा,चउथे पन के लाठी रे। का ओ दिन देखे बर जाबे,परही जे दिन काठी रे। जेखर किरपा ले जाने हस,काला कथें बिहानी हे। काबर आज उही दाई के,मन अँखियन मा पानी हे। रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर मु.गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
 श्रद्धा के सुरता माँ मिनी माता ************************                      लावणी छंद भारत माँ के हीरा बेटी,ममतामयी मिनी माता। तै माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता। सुरता हे उन्नीस् सौ तेरा, मार्च माह तारिक तेरा। देवमती बाई के कुँख मा,जन्म भइस रतिहा बेरा। खुशी बगरगे चारो-कोती,सुख आइस हे दुख जाके। ददा संत बड़ नाचन लागे,बेटी ला कोरा पाके। सुख अँजोर धर आइस बेरा,कटगे अँधियारी राता। तै माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता। छट्ठी नामकरण आयोजन,बनिन गाँव भर के साक्षी। मछरी सही आँख हे कहिके,नाँव धराइन मीनाक्षी। गुरु गोसाई अगम दास जी,गये रहिन आसाम धरा। शादी के प्रस्ताव रखिन हे,उही समय परिवार करा। अगम दास गुरु के पत्नी बन,मिलहिस नाँव मिनी माता। तैं माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता। सन उन्नीस् सौ इंक्यावन मा,अगम लोक गय अगम गुरू। खुद के दुख ला बिसर करे माँ,जन सेवा के काम शुरू। बने प्रथम महिला सांसद तैं,सारंगढ़ छत्तीसगढ़ ले। तोर एक ठन रहै निवेदन,जिनगी बर कुछ तो पढ़ ले। पढ़े लिखे ला काम दिलावस,सरकारी खुलवा खाता। तैं माँ हम संतान तोर ओ,बनगे हे पावन नाता। जन्म भू
गज़ल ख़ास क्या स्तर सभी का आम है देख कर चलना चुनावी शाम है ठोस विश्लेषक बना हर आदमी साथ सहयोगी चुनावी जाम है क्यों किसी से ख़ामख़ाँ उलझें भला हम को अपने काम से ही काम है देख भौंचक रह गया मै भीड़ को पूछ बैठा क्या यहाँ भी धाम है जो चराचर को कभी बाँटा नही आज मुद्दों मे उसी का नाम है माह भर कर लो चुनावी मेहनत फिर तो क्या है उम्र भर आराम है सो रही है मत समझ सुखदेव तू जागती आठो पहर आवाम है -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर गोरखपुर कबीरधाम (छ.ग.) ahileshver.blogspot.com
गज़ल ख़ास क्या स्तर सभी का आम है देख कर चलना चुनावी शाम है ठोस विश्लेषक बना हर आदमी साथ सहयोगी चुनावी जाम है क्यों किसी से ख़ामख़ाँ उलझें भला हम को अपने काम से ही काम है देख भौंचक रह गया मै भीड़ को पूछ बैठा क्या यहाँ भी धाम है जो चराचर को कभी बाँटा नही आज मुद्दों मे उसी का नाम है माह भर कर लो चुनावी मेहनत फिर तो क्या है उम्र भर आराम है सो रही है मत समझ सुखदेव तू जागती आठो पहर आवाम है -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर गोरखपुर कबीरधाम (छ.ग.) ahileshver.blogspot.com
गज़ल 2122 2122 212 तुम कहो जाओ तो जाऊँ क्यों भला तुम कहो आओ तो आऊँ क्यों भला तुम को हँसता देख कर ऐ अज़नबी साथ तेरे मुस्कुराऊँ क्यों भला प्यार चाहत दिल्लगी होगा कभी आज ही मै दिल लगाऊँ क्यों भला भक्ति अपनी तुझ स्वघोषित भक्त को चीर के सीना दिखाऊँ क्यों भला मेरे अपने तर्क भी तो ठोस है तेरी हाँ मे हाँ मिलाऊँ क्यों भला बच्चे पीते हैं बड़े ही चाव से दूध मूरत को पिलाऊँ क्यों भला तुम को गिनना है तो तुम बेशक गिनो काम अपने मै गिनाऊँ क्यों भला मै तो सच सुनता हूँ सच कहता भी हूँ सच को सुनके तिलमिलाऊँ क्यों भला आपने तोड़ा जिसे सुखदेव जी मै वही वादा निभाऊँ क्यों भला -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर गोरखपुर कबीरधाम(छ.ग.)
बरवै छंद बड़े बिहनहा उठके,गे हें खेत। सँघरा नाती बूढ़ा,कर के चेत। जातो जातो बेटी,धर ले पेज। भूँख मरे झन पावैं,लउहा लेज। चलना सँघरा जाबो,हो तइयार। घर ले अब्बड़ दुरिहा,परथे खार। तैं हा धरले पानी,अउ मै पेज। नइ मै जाँव अकेल्ला,झन तैं भेज। कहिके गे हें दाई,बाबू मोर। पढ़े लिखे मा देबे,बेटी जोर। नतनिन के मुँह ले जब,सुनथे गोठ। दादी करथे नतनिन,के मन मोठ। तोर ददा दाई ला,झन सरमेट। गे हें शहर नगर ओ,धर के पेट। सहीं कहे ओ बेटी,गोंदा फूल। ले भइगे अब जा तैं,हर इसकूल। अतका कहिके दादी,चलदिस खार। होगे बस्ता बेटी,के तइयार। दकियानूस सुधारन,लागे भूल। बेटी हाँसत जावत,हे इसकूल। दादी पेज धरे जब,पहुँचे खेत। काम बुता ला देखत,हरगे चेत। तर तर बूँद पसीना,हर चुचुवाय। देख देख अंतस मा,खुशी अमाय। नाती मुंगफली ला,कोड़त जाय। दादा बइठे बइठे,टोरत जाय। बइठय छँइहा मा अउ,पारय रेर। आवव जल्दी खालव,होगे देर। दादी बोरी धरके,जोरत जाय। छिन मा हाँथ गोड़ ला,मोरत जाय। नान्हे मति ले बरवै,लिखे अँजोर। पाठक मन पढ़के ले,लेहू सोर।         रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
चौपई छंद-श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर गणतंत्र का सोभा बरनँव सँहुराँव। खुश हे शहर नगर अउ गाँव। गली मोहल्ला पारा ठाँव। धजा तिरंगा ला पहुँचाँव। हे गणतंत्र दिवस त्यौहार। मन गदगद हे झारा झार। गुँजय तिरंगा के जय गान। जय भारत जय हिन्दुस्तान। सुग्घर संविधान के मंत्र। जेखर ले चलथे सब तंत्र। मानवता समता के यंत्र। सबले बढ़िया हे गणतंत्र। रोटी कपड़ा मान मकान। शिक्षा रोजी पद पहिचान। पूजा नियम धरम अउ दान। सब बर अवसर एक समान। शोषित वंचित जात समाज। आरक्षण पावत हे आज। कोठी मा अब हवय अनाज। फुलत फरत हे लोक सुराज। बोली भाषा भले अनेक। पर सबके अंतस हे एक। सद् विचार सबके हे नेक। अब हे मनखे मनखे एक। जनता होगे हे हुशियार। रेंगय रस्ता ला चतवार। देखय बिगड़े के आसार। लेवय अपने हाथ सँवार। ना लाठी तब्बल तलवार। ना सैना ना सिपहसलार। जनमत बर नइ हे तकरार। जनता अब चुनथे सरकार। बाबा भीमराव गुणवान। तुँहर कलम के लिखे विधान। हवय हमर बर जीव परान। मन के सुख मुँह के मुस्कान। रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर मु.गोरखपुर,कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
'अपना विद्यालय सरकारी' नही एक की हम सबकी है, निश्चित नैतिक जिम्मेवारी। सहयोगी बन चलो सँवारे, अपना विद्यालय सरकारी।। अपने ही बच्चे पढ़ते हैं। यहीं भाग्य अपना गढ़ते हैं। पौधों सा नित नित बढ़ते हैं। लक्ष्य सीढ़ियों पर चढ़ते हैं। फिर क्यों इतनी है दुश्वारी... सहयोगी बन चलो सँवारे, अपना विद्यालय सरकारी। कोशिश की ना कोई हद हो। अधिक नही तो एक अदद हो। सहयोग नही हो पाये धन से, तन मन से हर हाल मदद हो। हाथ धरे ना देखें पारी... सहयोगी बन चलो सँवारे, अपना विद्यालय सरकारी। कारज समय सरेख रहा है। आशान्वित हो देख रहा है। है इतिहास गवाह देख लें, योगदान पर लेख रहा है। होती कलम धार दो धारी... सहयोगी बन चलो सँवारे, अपना विद्यालय सरकारी। रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर मु.गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़