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पंथी गीत

  पंथी गीत एक-ठन हे दवाई तोर उदासी के। तैं शरण मा आजा गुरू घासी के। दुनिया जगत ला घुम-घुम देखे। हित अनहित सच झूठ सरेखे। नइये* कोनो कटइया चौरासी के। तैं शरण मा आजा गुरु घासी के। जाति बरण के भेद मिटाए। मनखे मनखे ल एक बताए। ओ कुपरथा जरोए दास-दासी के। तैं शरण मा आजा गुरू घासी के। बइठ-बिगारी ल अनीति बताए। बिधवा-बिहाव ल सहीं ठहराए। अधिकार देवाए सुख हॉंसी के। तैं शरण मा आजा गुरू घासी के। बाबा के उन्नत खेती के तरीका छत्तीसगढ़ बने धान कटोरा अब कमी नइहे रोटी भात बासी के। तैं शरण मा आजा गुरू घासी के। हिरदे के धरती म सत बीजा धर। समता सुमत सुख पा जिनगी भर। समे नाके झन बाउॅंत बियासी के। तैं शरण मा आजा गुरु घासी के। इही लोक संग परलोक सुधरही। सार जिनिस अंतस मा उतरही। सत भजन ल कर अविनाशी के। तैं शरण मा आजा गुरु घासी के। रचना-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर'' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़