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सतपथ दर्पण दिखलाऊँ ना मै दलित कहाने वाला,ना मै हरिजन कहलाऊँ। ये हूँ वो हूँ कहकर मिथ्या,ना ही मन को बहलाऊँ। मानव मानव एक बराबर,था भी है भी और रहेगा, संविधान श्रीमुख जीवन को सतपथ दर्पण दिखलाऊँ -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर     गोरखपुर कबीरधाम
"वाट्सएप वीर" चढ़ते रोज कमानों मे जन मन भेदक उन तीरों को। अपने ही धुन मे बजते उन झाँझ मृदंग मँजीरों को। बातों ही बातों मे सब कुछ पा लेना जो चाह रहे, आओ नमन करें हम ऐसे वाट्सएप के वीरों को। -सुखदेव सिंह अहिलेश्वर     गोरखपुर,कबीरधाम