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 "सूरुज सम सुखदाता संविधान निर्माता" लोकतंत्र पाये तैं पाये पद ला भाग्य विधाता के। संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के। चौदह अप्रेल अठ्ठारह सौ इन्क्यानवे ईसवी सन। भीमराव के जनम भइस ॲंधियारी रात पहाती कन। विश्वरतन के पिता रामजी सुबेदार सकपाल कहॅंय। बाबा साहब ला माता भीमाबाई के लाल कहॅंय। बचपन ले संघर्ष डगर के, पथरीला रस्ता रेंगिस। संविधान के बॉंध बना के, सुख के जलधारा छेंकिस। मध्यप्रदेश महू के माटी, गुण गाथे जे नाता के। संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के। भाग्य-वाद ला भेद बताइस, महिमा भागीदारी के। चिन्ह्वाइस चलके देखाइस, चौखट करम दुवारी के। शिक्षा समानता समता सुख के घर काला कहिथे जी। पुरुषारथ के परदरशन बर अवसर काला कहिथे जी। भारत के बढ़वार बड़ाई अउर भलाई कइसे हे। ऑंखी ला अलखाइस देखाइस के देखव दइसे हे। थके घमाये शोषित मनके, छानी छइहॉं छाता के। संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के। दफ्तर के दरवाजा-फइका, खुलगे अक्कल अलमारी। खुर्शी मा बइठे खुश हावयॅं, सबन जाति के नर नारी। सिपचाये ले अब नइ सिपचय, जात-धरम के चिंगारी। भारत माता के लइकन मा, देखे लाइक हे यारी। प
 कलम उठाकर थूक दिया मन में घर में जलता दीपक, तमराजों ने फूक दिया। बारूदी बंदूक उठाकर, धड़धड़ धड़-धड़ धूक दिया। उग्रवाद आतंकवाद इन नक्सलवाद पिशाचों के, कायर चेहरे पर मैंने भी कलम उठाकर थूक दिया। -सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''