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छन्द- मधुमालती "जनता तहीं जनतन्त्र के" भजले सुबह ले शाम तैं। मुखले मनुज सतनाम तैं। करके सतत सतकाम तैं। अंतस ल करले धाम तैं। तज दे निराशा डर अपन। हिरदे म साहस भर अपन। धरती अपन अम्बर अपन। फइला उड़े बर पर अपन। हॅंसिया कुदारी धर अपन। हार्वेसटर रीपर अपन। नवनास के नॉंगर अपन। खेती म दे जॉंगर अपन। अवसर हवय तोरो करा। गढ़ले भविस झन थर्थरा। लइका ल कर सोना खरा। सिल्हट कलम कापी धरा। मतलब समझ स्वातन्त्र के। मत के मनुज युग यन्त्र के। फेरा म झन पर मन्त्र के। जनता तहीं जनतन्त्र के। रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़