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बिसकरमा जयंती

  बिसकरमा जयंती - सरसी छन्द तइहा ले करते आवत हस, निरमाणन के काज। आज तुँहर हे जनम-जयंती, बिसकरमा महराज। सबले पहिली तहीं मढ़ाये, भिथिया मा मेयार। मुड़का ला पटिया बोहाये, ठोंके काँड़ उतार। कमरगाह बाँधे काँड़न मा, घर के तहीं सियान। कमचिल चिरके भदरी गाँथे, छाये नलिया-पान। जिनगानी बर छँइहा-छानी, मुड़ माथा बर ताज। आज तुँहर हे जनम-जयंती, बिसकरमा महराज। तुँहर सिखाये कामकाज ले, मिलिस हाथ ला काम। घर-परिवार चलाये खातिर, मिले लगिस कुछ दाम। रोजगार ले रोजी-रोटी, कपड़ा मान मकान। दुख होथे गा नइ मिल पाइस, सबला एक समान। अपरिद्धापन के हे भगवन, कुछ तो होय इलाज। आज तुँहर हे जनम-जयंती, बिसकरमा महराज। आज बनत हे महल अटारी, मोटर गाड़ी रेल। महिनत बाँचत हे मशीन ले, सिरजन होगे खेल। आशीर्वाद तुँहर हे सरलग, संग हवय विज्ञान। पहुँचे हन चन्दा मामा घर, चढ़ के चन्दर-यान। आनंदित हे आभारी हे, इंजीनियर समाज। आज तुँहर हे जनम-जयंती, बिसकरमा महराज। रचना- सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर" गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़