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  छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन 2122  1122  22 शक्ति पहिचान गुरू घासी के सत्य ला जान गुरू घासी के हे सरल सार सुलभ हितकारी बोधमय ज्ञान गुरू घासी के झूठ ठहरै न कभू माथा मा गोठ ला मान गुरू घासी के दुख बिपत्ती के भॅंवर टल जाही तॅंय लगा ध्यान गुरु घासी के आज संकर किसिम कहावत हे चुरकी भर धान गुरू घासी के बागवानी म चलत हे आजो जर तना दान गुरू घासी के मनखे मनखे म कहॉं हे अंतर नाक मुॅंह कान गुरू घासी के जेन ब्रम्हाण्ड पिता पालक ए एक भगवान गुरू घासी के भक्त सुखदेव पिके ज्ञान अमृत करथे जयगान गुरू घासी के रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
 विषय-लकर-धकर विधा-सार छंद खेत डहर ले आ के घर मा, तुरते ददा तियारे। दू दल हबरे हवय बेंदरा, जातो बेटा जा रे। सुनते साठ पहिर के चप्पल, खेत डहर दउड़े हॅंव। टीप छुवाउल कस नदिया के, खेत पहुॅंच तउॅंड़े हॅंव। पिच्च पिच्च एती ले ओती, कूदय बिकट पिलारी। एक हाथ मा उठा टप्प ले, पा लेवय महतारी। आठ मॅंझोला एती-तेती, किचकिच किचकिच दउड़ॅंय। छरियाये बॅंबरी मा चढ़के, कूदॅंय दउड़ॅंय तउड़ॅंय। बइठे निधक करय जी खिसखिस, मेड़ उपर मा हुॅंड़का। आवय अपन बेंदरा दल के, मालिक मुखिया मुॅंड़का। कोरी दू कोरी ले जादा, बॅंटा बॅंटा के बगरे। हुॅंड़कीमन मुॅंह देखत काहॅंय, लइका सो झन लग रे। कोनो मन भाॅंटा मा बइठे, कोनो मिरचा खावॅंय। कोनो मन बरबट्टी सेमी के पाना ला भावॅंय। दउॅंड़ाये मा दउॅंड़ चङ्ग ले, पेंड़ उपर चढ़ जावय। कोनो मसमोटिहा पपीता झाड़ी ला ढलगा दय। कोहा जेन सोझ मा जावय, खुद ला तुरत हटा लय। मुक्काबाज सहीं मुॅंह माथा, पक्का अपन बचा लय। हुय्या हुय्या कहत कहत मुॅंह,माथा मोर पिरागे। कोहा मारत मारत थक के, बेंवा पाॅंव थिरागे। ददा ढेखरा मा गुलेल ला, गेये हे अरझा के। कोहा फॅंसा फॅंसा गुलेल मा, मारॅंव हाथ भॅंवा के। बाजिस हे
"आडम्बर" विधा-छन्द हे विद्वतजन शीघ्र बहा दो आडम्बर को नाली में। भूख गरीबी परोसता है यह मानव की थाली में। माना मानस सदियों से कुछ आडम्बर की आदी है। पर यह सच है तन मन धन जन की इसमें बर्बादी है। स्वस्थ रीति के संग चलो तुम समय खड़ा अभिनन्दन में। प्रेम दया सद्भाव सुमत नित व्यवहृत हो जन गण मन में। व्यर्थ गॅंवाओ समय न यूॅं आडम्बर की रखवाली में। हे विद्वतजन शीघ्र बहा दो आडम्बर को नाली में। वैज्ञानिकी विचार भरो बचपन के मन में बस्ते में। मानवतावादी स्लोगन लिख टाॅंगो उसके रस्ते में। प्रौढ़ युवा समृद्ध दिखें नित नैतिक नेक विचारों से। ऋतुओं सा सहयोग मिले नित जनता को सरकारों से। नववधुऍं पहले ही दिन से पॉंव धरें खुशहाली में। हे विद्वतजन शीघ्र बहा दो आडम्बर को नाली में। अच्छा होता दुर्योधन के कान पकड़ खींचा जाता। बीच सभा में दु:शासन भी जोरदार थप्पड़ खाता। सेव पेंड़ जब फले धतूरा दोष नहीं क्यों माली में। हे विद्वतजन शीघ्र बहा दो आडम्बर को नाली में। रचना-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर'' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़ ahileshver.blogspot.com

अनगिन संतानों के नेमत

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"अनगिन संतानों के नेमत" विधा-ताटंक छन्द भोर भए सूरज की लाली,झुकी घटाऍं काली है। अनगिन संतानों के नेमत,हॅंसी खुशी हरियाली है। अधरों में संगीत सुधा ले,गीत हवा क्यों गाती है। श्याम सलोने को न रिझाने,वसुंधरा मुस्काती है। केश भिगोकर भूमि भामिनी घण्टों रोज नहाती है। प्रेम सुधा पीती मिट्टी से सौंधी सुगन्ध आती है। वन उपवन में जन जीवन में,छाई छटा निराली है। अनगिन संतानों के नेमत हॅंसी खुशी हरियाली है। गड़गड की आवाज सुनें देखें जब भी बिजली कौंधे। कान खड़ा कर सुनने को आतुर नन्हे नन्हे पौधे। दिन-दिन बढ़ना खुद को गढ़ना सजीवता की तैयारी। प्रतियोगिता सरीखा जीवन उस पर भी दुनियादारी। प्रोत्साहन को पीपल दादा रोज बजाता ताली है। अनगिन संतानों के नेमत हॅंसी खुशी हरियाली है। नई कोपलें निकल चुकी है वृक्षों की शाखाओं में। फूल खिलेंगे फल आयेंगे परहित है मन भावों में। फसल लहलहा रही खेत में व्यापा हर्ष किसानों में। नाम लिखा खाने वालों का सकल अन्न के दानों में। गुरूपर्व क्रिसमस मानो तुम मानो ईद दिवाली है। अनगिन संतानों के नेमत हॅंसी खुशी हरियाली है। रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर कबीरधाम छत