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मनखे अनजान कहाँ हे मनखे के वर्ण भेद के पहिचान कहाँ हे। पथरा म खोजे प्रान रे तोर ज्ञान कहाँ हे। मनखे बिसर डरे रे तोरे मान कहाँ हे। पुरखा ददा दाई सहीं भगवान कहाँ हे। सतिया धरे सेवा सहीं ईमान कहाँ हे। सद्भाव दया ले बड़े बिरवान कहाँ हे। महिनत ले बढ़के राष्ट्र के निर्माण कहाँ हे। ये बात ले मनखे घलो अनजान कहाँ हे। रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़