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 जागृति पंथी गीत आरो लेवत हे औंराबाँधा के माटी बाट जोहत हे बोड़सरा के माटी---२ का बुता म भुलाये हव..... एकता ल छोड़ के अघुवा बेटा, तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव। एकता ल छोड़ के बघवा बेटा, तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव। १. बैरी दुश्मन रोज भिड़े हें, आपस म लड़वाये बर। खूब रचे हें भूल-भुलैया, रस्ता ले भटकाये बर। चिंता करत हे चटुवापुरी के माटी रोज गुनत हे गिरौदपुरी के माटी---२ का चाही का पाये हव एकता ल छोड़ के अघुवा बेटा, तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव। एकता ल छोड़ के बघवा बेटा, तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव। २ नइहें कोनो हितवा मितवा, मया खँड़ा गे हे जाती मा। कहाँ ले निर्मल मया उपजही, बोली ठकुर सुहाती मा। खोज करत हे खड़ुवापुरी के माटी खबर पुछत हे खपरीपुरी के माटी---२ कामा चेत लगाये हव एकता ल छोड़ के अघुवा बेटा, तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव। एकता ल छोड़ के बघवा बेटा, तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव। ३. सुरता करलौ रोज सुमरलौ राजागुरू बलिदानी ला। हिरदे मा गठिया के धरलौ गुरू घासी के बानी ला। संसो करत हे भंडारपुरी के माटी संग हे तेलासीपुरी के माटी कोन डहर सुध लमाये हव एकता ल छोड़ के अघुवा बेटा, तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव। एकता ल छोड़ के बघवा
 पंथी गीत मॅंय तो पबरित चरण मनावॅंव गुरू के मोर..आरती वंदना ल गावॅंव गुरू के मोर आरती वंदना ल गावॅंव---कोरस बबा के मोर आरती वंदना ल गावॅंव---कोरस मॅंय तो चरणों में माथ नवावॅंव गुरू के मोर..आरती वंदना ल गावॅंव गुरू के मोर आरती वंदना ल गावॅंव---कोरस बबा के मोर आरती वंदना ल गावॅंव---कोरस पुरुषपिता ले जीव जगत पुकारे गुरू बिन कोन दुख विपदा ल टारे--कोरस गिरौदपुरी म बाबा लिए अवतारे ज्ञान अमरित देके हंसा ल उबारे---कोरस उही ज्ञान अमरित महूॅं पावॅंव गुरू के मोर..आरती वंदना ल गावॅंव---कोरस बबा के मोर आरती वंदना ल गावॅंव---कोरस चंदन घोरि घोरि ॲंगना लिपावॅंव गज मोति अन कर चौंक पुरावॅंव--कोरस हिरदे कमल बीच गदिया लगावॅंव ओहि गदिया म सतगुरू ल पौढ़ावॅंव--कोरस मॅंय तो मन भर दर्शन पावॅंव गुरू के मोर..आरती वंदना ल गावॅंव---कोरस बबा के मोर आरती वंदना ल गावॅंव---कोरस गुरु मोर ज्ञानी कर हे अमरित पानी सुने हावॅंव मैं ह सबो संत के जुबानी..कोरस बिना भेद-भाव बाबा करे हे सियानी सबो बर मीठ मया मीठ मीठ बानी..कोरस गुरु गुन गा के आशीष पावॅंव गुरू के मोर...आरती वंदना ल गावॅंव---कोरस बबा के मोर आरती वंदना ल गावॅंव---को
जसगीत महिमा ला गावॅंव तोर ओ, दाई तैं मोर सहारा। सेवा ला गावॅंव तोर ओ, दाई तैं तोर सहारा। तोर दया किरपा जिनगी भर, पावॅंव सुख उजियारा। महिमा ला गावॅंव तोर ओ, दाई तैं मोर सहारा। जननी बनके जनम दिये तैं, बहिनी बनके राखी। बेटी बन ॲंगना मा फुदके, हरसिस हिरदे ऑंखी। तोरे ॲंचरा के छइहॉं मा, दुलरावय जग सारा। महिमा ला गावॅंव तोर ओ, दाई तैं मोर सहारा। जनम-भूमि दाई तोर कोरा, आइन ज्ञानी ध्यानी। नॉंव अमर करके चल देइन, सत के छोड़ निशानी। सरी जगत के तरणतारिणी, तैं गंगा के धारा। महिमा ला गावॅंव तोर ओ, दाई तैं मोर सहारा। तोर बिना सृष्टि के रचना, दाई निचट अधूरा। तोर दया किरपा दुनिया के, सपना होथे पूरा। धरती ले आकाश तलक तोरे गूॅंजय जयकारा। महिमा ला गावॅंव तोर ओ, दाई तैं मोर सहारा। -सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
  बहर आधारित गीत 212 212 212 212 नोनी के दाई सुनतो ओ सुन ए डहर छोड़ना पर जही लागथे गॉंव घर नइये रोजी-मजूरी इहॉं गॉंव मा चल चली चल चली चल चली ओ शहर कपड़ा-लत्ता बिसाई के कापी कलम दिन गुजारी कतिक नून चटनी मा हम ये दरिदरी गरीबी ये फुटहा करम घाले बर लगथे खाये हे किरिया कसम दू हथेरी के खेती हे जरगे फसल चेत कउवा गइस झुॅंझरियागे नजर नइये रोजी-मजूरी इहॉं गॉंव मा चल चली चल चली चल चली ओ शहर... नोनी के दाई....। मुड़ धरे रोज बइठे म बनही कहॉं बिन मजूरी के घर पेट चलही कहॉं कर्जा कर कर गुजारा चलाई कतिक रोज कर्जा उधारी ह मिलही कहॉं कर्जा-बोड़ी ले उधियार होना हवय नइते कर्जा चगल जाही खेती हमर नइये रोजी-मजूरी इहॉं गॉंव मा चल चली चल चली चल चली ओ शहर...... नोनी के दाई...। काम-बूता के अंकाल नइहे उहॉं गॉंव कस हाल बेहाल नइहे उहॉं गॉंव छोड़े के दुख हा रोवाही भले मनखे मजबूर कंगाल नइहे उहॉं रोज खाबो कमाबो बचाबो घलो कहिथें होथे शहर मा हुनर के कदर नइये रोजी-मजूरी इहॉं गॉंव मा चल चली चल चली चल चली ओ शहर... नोनी के दाई....। रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

कुण्डलिया छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

  1-कुण्डलिया - निज भाषा आवश्यक अनिवार्य है, बहुभाषा का ज्ञान। पर निज भाषा के लिए, मॉं सम हो सम्मान।। मॉं सम हो सम्मान, नित्य व्यवहृत हो सादर। स्वत: मिले ऐ मित्र, मातृभाषा को आदर। इसका नहीं विभेद, अल्पसंख्यक बहुसंख्यक। निज भाषा का मान, प्रथमत: है आवश्यक। 2-कुण्डलिया - बॅंटवारा बॅंटवारा के हेतु में, था घर ऑंगन खेत। बिन बॉंटे मन बॅंट गया, माता-पिता समेत। माता-पिता समेत, बॅंट गये रिश्ते नाते। बॅंटे खाट घर-घाट, भावनाऍं जज्बातें। दो हिस्सों में बॉंट, लिया जैसे जग सारा। संतानों के बीच, हुआ ऐसा बॅंटवारा। 3- कुण्डलिया - हो रही दिनभर वर्षा वर्षा पर आश्रित फसल, फसलों पर खलिहान। खलिहानों पर मंडियॉं, लख लख मॉल दुकान। लख लख मॉल दुकान, रसोई घर हर घर के। फिर आश्रित हर पेट, गॉंव के शहर-नगर के। वर्षा बिना दिमाग, गया था कहीं ठहर सा। मन अब हुआ प्रसन्न, हो रही दिनभर वर्षा। 4-कुण्डलिया - धोयें अपना हाथ भोजन के पहले सदा, और शौच के बाद। साबुन से अच्छी तरह, धोयें अपना हाथ। धोयें अपना हाथ, तभी तो स्वस्छ  रहेंगे। तन मन होगा स्वस्थ, तभी तो खूब पढ़ेगे। है यह सुन्दर ज्ञान, न समझें केवल स्
 मीरा बाई चानू टोक्यो ओलंपिक ले पहलिच दिन खुशखबरी आइस हे। भारोत्तोलन मा जब सिल्वर, मेडल मीरा लाइस हे। हमर देश के खेल रतन ए, बेटी हमर पदमश्री ए। बेटी मन बर उज्जर सपना, साहस ए शाबाशी ए। माई के मुस्कान हरय, बेटी बाबा के हॉंसी ए। मणिपुर के मस्तक के मोती,गरब हमाये ऑंखी ए। भारत के बेटी ले बेटी, माई गौरव पाइस हे। भारोत्तोलन मा जब सिल्वर,मेडल मीरा लाइस हे। तारिख आठ अगस्त महीना, उन्नाइस सौ चौरनवे। मीरा बाई चानू जी के, जनम दिवस अब याद हवे। साइखोम कृति मैताई ए, पापा देश दुलारी के। नाव ओंगबी तोम्बी लीमा, मीरा के महतारी के। बचपन वाले भार बॉंस के, बेटी ला सॅंहुराइस हे। भारोत्तोलन मा जब सिल्वर, मेडल मीरा लाइस हे। कामनवेल्थ एशियन मा हे, पदक रजतिया सोना के। वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग मा हावय, सोना बिटिया सोना के। दो हजार इक्कीस बछर ए, गुजर गइस इक्कीस बछर। भारोत्तोलन मा आइस हे, ये दुसरइया मेडल घर। बेटी सन मा खुशी मनावत, देश मिठाई खाइस हे। भारोत्तोलन मा जब सिल्वर, मेडल मीरा लाइस हे। रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
 सतनाम आरती  होवत्थे गुरु के आरती होवत्थे गुरु के आरती सत भजन मा ..होवत्थे गुरु के आरती सत भजन मा शब्द सुमन चरनन म चढ़त हे 2 अंतस भितरी म आसन लगत हे 2 लमत्थे सत सुरती, बनत्थे सर्व सम्मति संत जनन मा..होवत्थे गुरु के आरती सत भजन मा पुरुष पिता मोर हिरदे बिराजे 2 मन प्रफुलित तन आरती साजे 2 नचत्थे भाव भगती, पटक पाँव धरती पंथी धुनन मा..होवत्थे गुरु के आरती सत भजन मा  सतगुरु घासी बाबा गिरौद निवासी घट घट वासी मोर गुरू सुखराशी कृपा करे हे महती, दिखे हे भाग जगती  सत्य गुणन मा..होवत्थे गुरु के आरती सत भजन मा होवत्थे गुरु के आरती,,होवत्थे गुरु के आरती सत भजन मा,,होवत्थे गुरु के आरती सत भजन मा रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़
 "सूरुज सम सुखदाता संविधान निर्माता" लोकतंत्र पाये तैं पाये पद ला भाग्य विधाता के। संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के। चौदह अप्रेल अठ्ठारह सौ इन्क्यानवे ईसवी सन। भीमराव के जनम भइस ॲंधियारी रात पहाती कन। विश्वरतन के पिता रामजी सुबेदार सकपाल कहॅंय। बाबा साहब ला माता भीमाबाई के लाल कहॅंय। बचपन ले संघर्ष डगर के, पथरीला रस्ता रेंगिस। संविधान के बॉंध बना के, सुख के जलधारा छेंकिस। मध्यप्रदेश महू के माटी, गुण गाथे जे नाता के। संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के। भाग्य-वाद ला भेद बताइस, महिमा भागीदारी के। चिन्ह्वाइस चलके देखाइस, चौखट करम दुवारी के। शिक्षा समानता समता सुख के घर काला कहिथे जी। पुरुषारथ के परदरशन बर अवसर काला कहिथे जी। भारत के बढ़वार बड़ाई अउर भलाई कइसे हे। ऑंखी ला अलखाइस देखाइस के देखव दइसे हे। थके घमाये शोषित मनके, छानी छइहॉं छाता के। संगवारी सुध सुरता करले, संविधान निर्माता के। दफ्तर के दरवाजा-फइका, खुलगे अक्कल अलमारी। खुर्शी मा बइठे खुश हावयॅं, सबन जाति के नर नारी। सिपचाये ले अब नइ सिपचय, जात-धरम के चिंगारी। भारत माता के लइकन मा, देखे लाइक हे यारी। प
 कलम उठाकर थूक दिया मन में घर में जलता दीपक, तमराजों ने फूक दिया। बारूदी बंदूक उठाकर, धड़धड़ धड़-धड़ धूक दिया। उग्रवाद आतंकवाद इन नक्सलवाद पिशाचों के, कायर चेहरे पर मैंने भी कलम उठाकर थूक दिया। -सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

पंथी गीत

  पंथी गीत एक-ठन हे दवाई तोर उदासी के। तैं शरण मा आजा गुरू घासी के। दुनिया जगत ला घुम-घुम देखे। हित अनहित सच झूठ सरेखे। नइये* कोनो कटइया चौरासी के। तैं शरण मा आजा गुरु घासी के। जाति बरण के भेद मिटाए। मनखे मनखे ल एक बताए। ओ कुपरथा जरोए दास-दासी के। तैं शरण मा आजा गुरू घासी के। बइठ-बिगारी ल अनीति बताए। बिधवा-बिहाव ल सहीं ठहराए। अधिकार देवाए सुख हॉंसी के। तैं शरण मा आजा गुरू घासी के। बाबा के उन्नत खेती के तरीका छत्तीसगढ़ बने धान कटोरा अब कमी नइहे रोटी भात बासी के। तैं शरण मा आजा गुरू घासी के। हिरदे के धरती म सत बीजा धर। समता सुमत सुख पा जिनगी भर। समे नाके झन बाउॅंत बियासी के। तैं शरण मा आजा गुरु घासी के। इही लोक संग परलोक सुधरही। सार जिनिस अंतस मा उतरही। सत भजन ल कर अविनाशी के। तैं शरण मा आजा गुरु घासी के। रचना-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर'' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़