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 #बोरे बासी (लावणी छन्द) एक मई मजदूर दिवस ला, सँहुराही बोरे बासी। नून गोंदली सो बतियावत, मुस्काही बोरे बासी। कय प्रकार के होथे बासी, प्रश्न परीक्षा मा आही। काला कथें तियासी बासी, लइकन सो पूछे जाही। रतिहाकन के बँचे भात मा, पानी डार रखे जाथे। होत बिहनहा नून डार के, बासी रूप भखे जाथे। नौ दस बज्जी भात राँध के, जल मा जुड़वाये जाथे। बोरे बासी कहत मँझनिया, अउ संझा खाये जाथे। बोरे बासी बाँच कहूँ गय, दूसर दिवस बिहनहा बर। उही तियासी बासी आवय, गाँव गरीब किसनहा बर। बिन सब्जी के दुनो जुहर ला, नहकाही बोरे बासी। नून गोंदली सो बतियावत, मुस्काही बोरे बासी। छत्तीसगढ़ सरकार दिखावत, हावय छत्तीसगढ़िया पन। अच्छा हे सबके तन मन ला, भावय छत्तीसगढ़िया पन। बात चलत हे गोबर आँगन, खेत खार घर बारी के। नरवा गरुवा घुरुवा मनके, संरक्षण रखवारी के। बड़ गुणकारी होथे बासी, घर बन सबो बतावत हें। नवा खवइया मन भलते, बासी खा के जम्हावत हें। एक सइकमा बोरे बासी, कय रुपिया मा आही जी। होटल मन मा बहुते जल्दी, मेनू कार्ड बताही जी। जिलाधीश नेता मंत्री खुश हो खाहीं बोरे बासी। नून गोंदली सो बतियावत, मुस्काही बोरे बासी। छप्पन भोग सुने हन