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प्रवासी मजदूर भइया मजदूर प्रवासी। देखत हँव तोर उदासी। भइया मजदूर प्रवासी। देखत हँव तोर उदासी। सिरजाये शहर नगर ला, तँय छोड़ भये सन्यासी। रेंगे पी जग के हाला। पाँवो मा परगे छाला। दिनदिन भर मिल नइ पाए, रोटी के एक निवाला। दुख बरसे सरलग अइसे, जइसे बादर चउमासी। मुड़ मा बोहे ओ गठरी। औरंगाबाद के पटरी। टकटक ले सबो दिखत हे, रोटी अउ चद्दर कथरी। मन हा बोधावत नइहे आवत हे यार रोवासी। जब ले छाये कोरोना। दुनिया के कोना कोना। सब हें घर मा धन्धाये, तोरे भर हो गे रोना। तँय सावचेत रहिबे गा झन होवय सर्दी खाँसी। देखे निज कुरिया छानी। आँखी मा भर के पानी। सपना के शहर नगर मा, ला के टाँगे जिनगानी। अच्छा होतिस खा लेते गाँवे मा चटनी बासी। रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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सतनाम आरती होवत्थे गुरु के आरती होवत्थे गुरु के आरती सत भजनों से..होवत्थे गुरु के आरती सत भजनों से सेत सिंहासन मन म मढ़त हे 2 शब्द सुमन चरनन म चढ़त हे 2 लमत्थे सत सुरती लमत्थे सत सुरती संत जनों के..होवत्थे गुरु के आरती सत भजनों से पुरुष पिता आ के हिरदे बिराजे 2 मन प्रफुलित तन आरती साजे 2 नचत्थे भाव भगती पटक पाँव धरती पंथी धुनों मे..होवत्थे गुरु के आरती सत भजनों से हिरदे बिराजे सतगुरु बाबा घासी 2 घट घट वासी गुरू गिरौद निवासी 2 कृपा करे हे महती दिखे हे भाग जगती सत्य गुणों से..होवत्थे गुरु के आरती सत भजनों से होवत्थे गुरु के आरती होवत्थे गुरु के आरती सत भजनों से होवत्थे गुरु के आरती सत भजनों से रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़
बाल कविता-आमा चर्रक अम्मट आमा लाये हावय मामा इस्कूटी मा धर के युरिया बोरी भर के आमा ल दिस झर्रा कल के धूँका गर्रा फुटे फुटे ल चान डर साबुत ल रख अथान बर दादी आमा छोलय बबा ह गोही खोलय माँ खलहारय धोवय फाँकी ला बगरोवय लाहीं जीजा साला सरसों तेल मसाला रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़