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'राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई' सत के सत्ता बर सुमता बाँधी जुरियाई। राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई। बाबा गुरु घासीदास जताये हे तोला। गुरु अम्मरदास करे हावय अर्पित चोला। सभिमान सिखइया भुजबल महंत के डोला। सुरता कर अँवरा-बाँधा के बारी-कोला। आजो दँउड़य नस नस मा सरहा जोधाई। राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई। मनखे मनखे ला एक मनइया आवस तैं। भटके मन ला सतराह धरइया आवस तैं। पर के नारी ला मातु कहइया आवस तैं। ये माँस नशा ला दूर रहइया आवस तैं। सुरता कर का संस्कार भरे सफुरा दाई। राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई। वो भेद विसमता फइलाही हम समता जी। सच ला लिखबो थाम्हे हन हाथ कलम ता जी। धीरज राखे मा जीत हवय झन मन्ता जी। सच आज नही ता काल समझही जनता जी। पाटे बर ऊँच-नीच के हे खँचवा-खाई। राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई। सद्भभाव सुमत ले मुस्कावय भारत भुँइया। सुख दया मया घर घर पावय भारत भुँइया। संग शुद्ध पवन के लहरावय भारत भुँइया। जग बर संसाधन उपजावय भारत भुँइया। ये पावन पबरित भाव घरोघर पहुँचाई। राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई। रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
'जनता कर्फ्यू-(सरसी-लावणी छंद गीत) 22.03.2020 सुरुज नरायण तहूँ कृपा कर,चरचर ले कर घाम। 'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम। लटकन के चटकन बीमारी,एती ओती चटकत हे। साधारण सर्दी खाँसी हा,कोरोना कस खटकत हे। चैन टोर के कोरोना के,पाँव करे बर जाम। 'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम। काल बरोबर कोरोना हा,दुनिया भर मा छा गे हे। भारत भुँइया घलो दुखी चिंतित हे अउ घबरागे हे। शहर गाँव झन फइले पावय,जल्दी लगय लगाम। 'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम। घर परिवार सगा सोदर ला,कानोकान जतावत हन। शासन के निर्देश काय हे,फोन लगा समझावत हन। सब के सतर्कता ले टल जै,दुख-दायक अंजाम। 'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम। अन्य देश परान्त ले कोनो,गाँव शहर मा आवत हें। लोगन भिन्न भिन्न माध्यम ले,सत्य खबर पहुँचावत हें। चौदह दिन बर क्वारंटाइन,देख-रेख के काम। 'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम। भाँप संक्रमण के खतरा ला,भीड़ लगाना वर्जित हे। घुमे-फिरे बर बाहर जाना,छुना-छुवाना वर्जित हे। खेवन खेवन हाथ ल धोवन,घर मा करन अ
'रे जग बयरी कोरोना' चालिस डिगरी घाम ताव मा,दुबक जबे कोनो कोना। हमला का डरुहाये सकबे रे जग बयरी कोरोना। रोके बर तहनाज प्रशासन,तोर सगा-सैमर मन ला। दुर्राना हे कइसे तोला,अलखावत हे जन जन ला। अभिवादन जोहार नमस्ते,जानत हवन हाथ धोना। हमला का डरुहाये सकबे रे जग बयरी कोरोना। जतका माध्यम हे बगरे के,रोड रवन हे नाके के। स्वस्थ सुरक्षित तैनाती हे,पहिचाने के ताके के। जल्दी धरके फूट इहाँ ले,डिस्पोजल पतरी दोना। हमला का डरुहाये सकबे रे जग बयरी कोरोना। -सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'