सार छंद
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"पौधा एक लगाऊँ"
आवो बैठो पास तुम्हे मै,मन की बात बताऊँ।
मेरा मन है इस बारिश में,पौधा एक लगाऊँ।
रूधूँ तार सहेजूँ उसको,अपना मित्र बनालूँ।
खातू माटी पानी देकर,बच्चे जैसा पालूँ।
संग पवन के नन्हा पौधा,खुश होके लहराये।
मेरा मन भी उसके सँग सँग,झूमे नाचे गाये।
जब जब निकले शाखा पत्ती,गीनूँ और बताऊँ।
मेरा मन है इस बारिश मे, पौधा एक लगाऊँ।
आसमान को छूने शाखा,बाहों को फैलाये।
शाखाओं मे रंग बिरंगे,फूल खिले मुसकाये।
फल से लदी डालियाँ उसकी,नम्र भाव दिखलाये।
सब कुछ देकर सहज भाव से,परमारथ सिखलाये।
यही प्रवृत्ती अपने भीतर,मै भी आज जगाऊँ।
मेरा मन है इस बारिश मे, पौधा एक लगाऊँ।
उड़ती चिड़िया थक कर उसमे,बैठ जरा सुसताये।
बैठ पथिक छाँया मे उसके,जीवन का सुख पाये।
दूर प्रदूषण को करने की,किस्सा बहुत पुरानी।
मै भी साथ रहूँगा उसमे, अपने मन है ठानी।
मन की इच्छा पूरी होगी, चैन तभी मै पाऊँ।
मेरा मन है इस बारिश मे,पौधा एक लगाऊँ।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
शिक्षक पंचायत-शा.पू.मा.शाला,मक्के
गोरखपुर,कवर्धा(छ.ग.)
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"पौधा एक लगाऊँ"
आवो बैठो पास तुम्हे मै,मन की बात बताऊँ।
मेरा मन है इस बारिश में,पौधा एक लगाऊँ।
रूधूँ तार सहेजूँ उसको,अपना मित्र बनालूँ।
खातू माटी पानी देकर,बच्चे जैसा पालूँ।
संग पवन के नन्हा पौधा,खुश होके लहराये।
मेरा मन भी उसके सँग सँग,झूमे नाचे गाये।
जब जब निकले शाखा पत्ती,गीनूँ और बताऊँ।
मेरा मन है इस बारिश मे, पौधा एक लगाऊँ।
आसमान को छूने शाखा,बाहों को फैलाये।
शाखाओं मे रंग बिरंगे,फूल खिले मुसकाये।
फल से लदी डालियाँ उसकी,नम्र भाव दिखलाये।
सब कुछ देकर सहज भाव से,परमारथ सिखलाये।
यही प्रवृत्ती अपने भीतर,मै भी आज जगाऊँ।
मेरा मन है इस बारिश मे, पौधा एक लगाऊँ।
उड़ती चिड़िया थक कर उसमे,बैठ जरा सुसताये।
बैठ पथिक छाँया मे उसके,जीवन का सुख पाये।
दूर प्रदूषण को करने की,किस्सा बहुत पुरानी।
मै भी साथ रहूँगा उसमे, अपने मन है ठानी।
मन की इच्छा पूरी होगी, चैन तभी मै पाऊँ।
मेरा मन है इस बारिश मे,पौधा एक लगाऊँ।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
शिक्षक पंचायत-शा.पू.मा.शाला,मक्के
गोरखपुर,कवर्धा(छ.ग.)
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