"" सुखदेव के करुण स्वर ""
सुमता सलाह के भाखा भुला गे
लागत हे मती म मिरचुक हमा गे
साफ दिखत हे सुवारथ के सौदा
सच्चा ठगा गे अउ लबरा फभा गे
कुमता के आगी अउ झगरा के आँधी
संघरा आही शहर गाँव लेसा जाही
चारो मुड़ा राखे राख नजर आही
मुआ मानवता बर महुरा धरे हे
बोली म गोली बारूद भरे हे
रोज मतरथे बुजा मती माथा
केत बरोबर तो पाछू परे हे
भेर भरम घर घर म सुलगाही
घर परिवार समाज नठा जाही
चारो मुड़ा राखे राख नजर आही
चिन्हव चिन्हव ये अमरबेल मन ल
जानव ढेकुना किरनी मनके परन ल
चुहके न पावँय अब लहू कहूँ के
हम ला बचाना हे अपन चमन ल
बिना कमाये इन खाहीं अघाहीं
हमर बिरवा ठाढ़े ठाढ़ सुखा जाही
चारो मुड़ा राखे राख नजर आही
रचना- सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
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