'अपना विद्यालय सरकारी'

नही एक की हम सबकी है,
निश्चित नैतिक जिम्मेवारी।
सहयोगी बन चलो सँवारे,
अपना विद्यालय सरकारी।।

अपने ही बच्चे पढ़ते हैं।
यहीं भाग्य अपना गढ़ते हैं।
पौधों सा नित नित बढ़ते हैं।
लक्ष्य सीढ़ियों पर चढ़ते हैं।

फिर क्यों इतनी है दुश्वारी...
सहयोगी बन चलो सँवारे,
अपना विद्यालय सरकारी।

कोशिश की ना कोई हद हो।
अधिक नही तो एक अदद हो।
सहयोग नही हो पाये धन से,
तन मन से हर हाल मदद हो।

हाथ धरे ना देखें पारी...
सहयोगी बन चलो सँवारे,
अपना विद्यालय सरकारी।

कारज समय सरेख रहा है।
आशान्वित हो देख रहा है।
है इतिहास गवाह देख लें,
योगदान पर लेख रहा है।

होती कलम धार दो धारी...
सहयोगी बन चलो सँवारे,
अपना विद्यालय सरकारी।

रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
मु.गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़














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