जागृति पंथी गीत


आरो लेवत हे औंराबाँधा के माटी

बाट जोहत हे बोड़सरा के माटी---२


का बुता म भुलाये हव.....


एकता ल छोड़ के अघुवा बेटा,

तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव।

एकता ल छोड़ के बघवा बेटा,

तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव।


१.

बैरी दुश्मन रोज भिड़े हें, आपस म लड़वाये बर।

खूब रचे हें भूल-भुलैया, रस्ता ले भटकाये बर।


चिंता करत हे चटुवापुरी के माटी

रोज गुनत हे गिरौदपुरी के माटी---२


का चाही का पाये हव


एकता ल छोड़ के अघुवा बेटा,

तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव।

एकता ल छोड़ के बघवा बेटा,

तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव।


नइहें कोनो हितवा मितवा, मया खँड़ा गे हे जाती मा।

कहाँ ले निर्मल मया उपजही, बोली ठकुर सुहाती मा।


खोज करत हे खड़ुवापुरी के माटी

खबर पुछत हे खपरीपुरी के माटी---२


कामा चेत लगाये हव


एकता ल छोड़ के अघुवा बेटा,

तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव।

एकता ल छोड़ के बघवा बेटा,

तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव।


३.

सुरता करलौ रोज सुमरलौ राजागुरू बलिदानी ला।

हिरदे मा गठिया के धरलौ गुरू घासी के बानी ला।


संसो करत हे भंडारपुरी के माटी

संग हे तेलासीपुरी के माटी


कोन डहर सुध लमाये हव


एकता ल छोड़ के अघुवा बेटा,

तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव।

एकता ल छोड़ के बघवा बेटा,

तिड़ी-बिड़ी छरियाये हव।


रचना-सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़



 

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