बाल कविता


"आगे सोला जून"


जून! जून! जून!

आगे सोला जून।

कटवाये बर बाल,

जाहूँ मँय सेलून।


बाबू जी के साथ।

धरके ओखर हाथ।

मिलही फेरे यार।

घूमे बर बाजार।


खूब किंजरहूँ हाट।

खाहूँ गुपचुप चाट।

खाहूँ फर अंगूर।

केरा सेव जरूर।


चाही मोला जेन।

कापी पुस्तक पेन।

लेही बाबू मोर।

झन तँय दाँत गिजोर।


-सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"



"आजा आजा नानी"


आजा आजा नानी

मँय हर देहूँ पानी

तँय हर देबे मोला

मीठ कलिन्दर चानी


साबून मा नहवाबे

गुरतुर गाना गाबे

अम्मा हा खिसियाथे

मोला तँय सम्हराबे


खुश हो खाना खाहूँ

नइ मँय कभू रिसाहूँ

झटपट बस्ता धरके

कुलकत इस्कूल जाहूँ


-सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"



" छा जा बादर छा जा "


छा जा बादर छा जा।

धर के आजा बाजा।

खेल खेल मा मैं हा, 

आज बने हॅंव राजा।


तोला कहिथें दानी।

बरसा देना पानी।

पटपट पटपट बाजय,

घर के खपरा छानी।


छानी के सब पानी।

ॲंगना मा सकलावय।

मोर नानकन ॲंगना,

टम टम ले भर जावय।


घानी मूनी घानी।

खेला आनी बानी।

छपक छपक छप मनभर,

खेलय मुनिया रानी।


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''


बाल कविता


आना संगी आना।

संगे खाबो खाना।


बुआ बनावय रोटी।

बेलत हावय छोटी।


सेमी के हे सब्जी।

बंद अभी कर पब्जी।


हाथ मुहूॅं ला धो ले।

हावय साफ तभो ले।


मोर हाथ झन अइठो।

मार पाल्थी बइठो।


थारी मा परसाही।

ताते तात खवाही।


रचना-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''


नारा---


बेटी पढ़ही आगू बढ़ही।

खुद बर सुखमय जिनगी गढ़ही।


सबले बड़का हे बरदान

संगवारी ये अक्षर ज्ञान


कतको होही तोर परीक्षा।

तोला सफल बनाही शिक्षा।


झन कह टूरा टूरी हे

पढ़ना बहुत जरूरी हे


सुख हर तोला लेही खोज।

विद्यालय जब जाबे रोज।


अंते काँही हे बनबे

इस्कुल मा मनखे बनबे


-सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"















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