वियोग श्रृंगार - बादर म मोर चन्दा


अँधियार म जिये बर जिनगी नठा गे हे।

बादर म मोर चंदा जब ले लुका गे हे।


चौरा म बइठे बइठे बेरा पहा जथे।

बिन खाय एक दू दिन भूखे रहा जथे।


न काल के हे चिन्ता न आज के फिकर

सिरतो न कुछ सुहावै संगवारी के बिगर


जैसे कुआँ म सपना जा के झपा गे हे।

बादर म मोर चंदा जब ले लुका गे हे।


चल देहे दू ठो छौना कोरा म छोड़ के

ए मन हे मोर बर गा लाखों करोड़ के


जिये ल परही मोला इकरें भविष्य बर

सुरता ओकर रोवाही भलते धरर धरर


सुख मा चलत ये जिनगी दुख मा धँधा गे हे

बादर म मोर चन्दा जब ले लुका गे हे


रचना - सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट