हे जग के जननी
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                    "विष्णुपद छंद"

जुग जुग ले कवि गावत हावँय,नारी के महिमा।
रूप अनूप निहारत दुनिया,   नारी के छवि मा।

प्यार दुलार दया के नारी,अनुपम रूप धरे।
भुँइया मा ममता उपजाये,जम के त्रास हरे।

जग के खींचे मर्यादा मा,    बन जल धार बहे।
मातु-बहिन बेटी पत्नी बन,सुख दुख संग सहे।

रूढ़ी वादी मीथक टोरे, नव प्रतिमान गढ़े।
नारी के परताप कृपा ले,जीवन मूल्य बढ़े।

धरती ले आगास तलक मा,  गूँजत दल बल हा।
देख धमक नारी के दुबके,धन बल अउ कल हा।

नारी क्षमता देख धरागे,       अँगरी दाँत तरी।
जनम जनम के मतलाये मन,होगे आज फरी।


रचनाकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
                      गोरखपुर,कवर्धा
                      08/03/2018




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