'राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई'

सत के सत्ता बर सुमता बाँधी जुरियाई।
राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई।

बाबा गुरु घासीदास जताये हे तोला।
गुरु अम्मरदास करे हावय अर्पित चोला।
सभिमान सिखइया भुजबल महंत के डोला।
सुरता कर अँवरा-बाँधा के बारी-कोला।

आजो दँउड़य नस नस मा सरहा जोधाई।
राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई।

मनखे मनखे ला एक मनइया आवस तैं।
भटके मन ला सतराह धरइया आवस तैं।
पर के नारी ला मातु कहइया आवस तैं।
ये माँस नशा ला दूर रहइया आवस तैं।

सुरता कर का संस्कार भरे सफुरा दाई।
राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई।

वो भेद विसमता फइलाही हम समता जी।
सच ला लिखबो थाम्हे हन हाथ कलम ता जी।
धीरज राखे मा जीत हवय झन मन्ता जी।
सच आज नही ता काल समझही जनता जी।

पाटे बर ऊँच-नीच के हे खँचवा-खाई।
राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई।

सद्भभाव सुमत ले मुस्कावय भारत भुँइया।
सुख दया मया घर घर पावय भारत भुँइया।
संग शुद्ध पवन के लहरावय भारत भुँइया।
जग बर संसाधन उपजावय भारत भुँइया।

ये पावन पबरित भाव घरोघर पहुँचाई।
राजा गुरु बालकदास पुकारत हे भाई।


रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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