"दीया जलाहूँ"

दाई...

दीया जलाहूँ

मोला गिनती ले
एक ठन जादा दीया दे देबे।

गुरुजी कहिथे
दीया अउ ज्ञान अँजोर करथे।

दीया
बाहिर अँजोर करथे 
अँधियारी ला हरथे।
ज्ञान
भीतर अंतस म अँजोर करथे
अज्ञानता के अँधियारी ल हरथे।

दीया पर्व
ज्ञान पर्व आय।

दीया दान
ज्ञान दान आय।

एक ठन दीया ले
अनगिनत दीया जलाय जा सकथे।
ज्ञान घलो सरलग बगराय जा सकथे।

बचपन
विद्यार्थी बन
विद्यालय म आथे
ज्ञान पाथे ज्ञानवान बनथे,
तहान सेवा कार्य म लग जथे।

उपयोगी सामान बनाथे
रेंगत दउड़त जिनगी बर।

बिजली,बल्फ
छोटे अउ बड़े मशीन,अनगिन

चारपाई,
जीवन रक्षक दवाई,
जरूरी सामान अतका
बादर भर बगरे सुकवा,
चुरकी भर जुवाँड़ के लाई जतका।

दाई....

घठौंदा मा पानी बर
गाँव के सबो देवधामी बर
पुरखा बर शमसान मा
गउ के गउठान मा
पुरखौती डीह मा
अन्न देवइया महतारी खेती बर
पाँच दीया पंच तत प्रकृति बर
पुरुषपिता के नाम बर
सत के निशानी जैतखाम मा
दीया जलाहूँ

लहुटत खानी
सुरता करके
अपन विद्यालय के दुवारी म
जिहाँ ले निकले ज्ञान के प्रकाश
अनगिनत अंतस मा अँजोर करत आवत हे,

दाई...उहाँ एक ठन दीया जलाहूँ.......

दीप पर्व ज्ञान पर्व के शुभकामना अउ बधाई


-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"







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