चौपाई छंद- श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

""मँय घासी अँव""

धरम करम बिन दिन नइ नाकय।मनखे एला ओला चाकय।
गुरु घासी सुरता मा आवय।सब संतन ला ज्ञान लखावय।

सुन आ संत बइठ सुसताले।मँय घासी अँव बोल बताले।
मै नइ कहँव भजे बर मोला।मै नइ कहँव अमर हे चोला।

माटी ले सिरजित हे काया।माटी हे जग माटी माया।
इक दिन माटी मा मिल जाना।फिर काहे मनुवा इतराना।

बड़ पबरित हे मानुष जोनी।सत बीजा के कर ले बोनी।
जात धरम के झन दे ताना।मनखे मनखे एक समाना।

पुरुष पिता सतनाम सार हे।जीव ब्रह्म जग सत अधार हे।
ज्योति पुरुष के नाम सुमर ले।इहाँ उहाँ बर गठिया धर ले।

मान पुरुष के सेत निशानी।झन कर मनुवा आनाकानी।
सुनले गुरु के अमरित बानी।होही धन्य जनम जिनगानी।

सोना चाँदी माल खजाना।नइ लागय रुपिया ना दाना।
अंतस मा सत श्रद्धा धर ले।हाथ जोर सतनाम सुमर ले।

नाथ इहें अउ माथ इहें हे।सत कारज बर हाथ इहें हे।
समय रहत नेकी नित कर ले।जियते मा भँवसागर तर ले।

तर्क करन जानन तब मानन।चौरासी फाँसा पहिचानन।
दाना का हे कोन शिकारी।संत सुजन जन कर चिन्हारी।

सरसुधिया के सुध ला पा के।ठग-जग बइठे हाट लगाके।
चमक-दमक हे चारो कोती।देख गँवागे मन के मोती।

रंग रंग के खेल तमासा।भीड़ लगे हे अच्छा खासा।
हंसा फँस झन भटका खावै।अस कहि सद्गुरु राह बतावै।

मनखे अस मनखे सहीं,रहय कर्म व्यवहार।
झूठ ढोंग पाखण्ड के,झन तँय झाँक दुवार।

छंदकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
   गोरखपुर,कवर्धा(छत्तीसगढ़)

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