"निर्धनता"

निर्धनता के खेल निराले।
तुम भी देखो ऊपर वाले।

भूख गरीबी की लाचारी।
उम्मीदों पर पड़ती भारी।

कभी जिन्दगी जीत न पाई,
लड़ी मगर निश्चित ही हारी।

मजबूरी बच्चों के सपने।
तोड़ रही हाथों से अपने।

पहले खोजे भोजन पानी।
या गरीब खोजे छत छानी।

पड़े पैर मे दुख के छाले।
तुम भी देखो ऊपर वाले।

झुग्गी मे  बेहाल सभी हैं।
छत छानी दीवाल कभी है।

लगा बरसने जब भी बादल,
सिर ऊपर तिरपाल तभी है।

बच्चों को भगवान भरोसे,
छोड़ गया वह इत्मिनान से।

रखते हों प्रभु पास भले ही,
पर बच्चे हैं दूर ज्ञान से।

घोर विपत्ती बादल काले।
तुम भी देखो ऊपर वाले।

स्वप्न अधूरे पक्के कच्चे।
देख रहे गरीब के बच्चे।

कहलाता भगवान रहा है।
बचपन कूड़ा छान रहा है।

गायब हुआ पीठ से बस्ता।
भूल गया शाला का रस्ता।

अब दिन कूड़े मे कटते हैं।
बाल राख मे सन लटते हैं।

कहते कोई कहाँ?नहाले।
तुम भी देखो ऊपर वाले।

घिरा हुआ बैठा कूड़े से,
हाथों मे कूड़ा कचरा है।

बचपन ढूंढ रहा क्या मोती,
जो इस कूड़े मे पसरा है।

नन्हे हाथों मे क्यों उसके?
कापी पुस्तक पेन नही है।

बचपन चढ़ विद्यालय जाये,
घर के बाहर वेन नही है।

अब सपने हैं राम हवाले।
तुम भी देखो ऊपर वाले।

रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
                     गोरखपुर,कवर्धा



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