गज़ल

2122 2122 212

तुम कहो जाओ तो जाऊँ क्यों भला
तुम कहो आओ तो आऊँ क्यों भला

तुम को हँसता देख कर ऐ अज़नबी
साथ तेरे मुस्कुराऊँ क्यों भला

प्यार चाहत दिल्लगी होगा कभी
आज ही मै दिल लगाऊँ क्यों भला

भक्ति अपनी तुझ स्वघोषित भक्त को
चीर के सीना दिखाऊँ क्यों भला

मेरे अपने तर्क भी तो ठोस है
तेरी हाँ मे हाँ मिलाऊँ क्यों भला

बच्चे पीते हैं बड़े ही चाव से
दूध मूरत को पिलाऊँ क्यों भला

तुम को गिनना है तो तुम बेशक गिनो
काम अपने मै गिनाऊँ क्यों भला

मै तो सच सुनता हूँ सच कहता भी हूँ
सच को सुनके तिलमिलाऊँ क्यों भला

आपने तोड़ा जिसे सुखदेव जी
मै वही वादा निभाऊँ क्यों भला

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम(छ.ग.)




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