लावणी छंद-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
शीर्षक-दाई
जेखर अँचरा के छँइहा मा,उपजे जुग जिनगानी हे।
काबर आज उही दाई के,मन अँखियन मा पानी हे।
जेखर अँगरी धरके बचपन,पहली पाँव उचाइस हे।
उच्चारिस माँ शब्द कण्ठ ले,कुलकिस रेंगिस धाइस हे।
जेखर किरपा उमर जवानी,समझिस का छत छानी हे।
काबर आज उही दाई के,मन अँखियन मा पानी हे।
कहाँ छुपे हस राज दुलारा,चउथे पन के लाठी रे।
का ओ दिन देखे बर जाबे,परही जे दिन काठी रे।
जेखर किरपा ले जाने हस,काला कथें बिहानी हे।
काबर आज उही दाई के,मन अँखियन मा पानी हे।
रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
मु.गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
शीर्षक-दाई
जेखर अँचरा के छँइहा मा,उपजे जुग जिनगानी हे।
काबर आज उही दाई के,मन अँखियन मा पानी हे।
जेखर अँगरी धरके बचपन,पहली पाँव उचाइस हे।
उच्चारिस माँ शब्द कण्ठ ले,कुलकिस रेंगिस धाइस हे।
जेखर किरपा उमर जवानी,समझिस का छत छानी हे।
काबर आज उही दाई के,मन अँखियन मा पानी हे।
कहाँ छुपे हस राज दुलारा,चउथे पन के लाठी रे।
का ओ दिन देखे बर जाबे,परही जे दिन काठी रे।
जेखर किरपा ले जाने हस,काला कथें बिहानी हे।
काबर आज उही दाई के,मन अँखियन मा पानी हे।
रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
मु.गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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