अनगिन संतानों के नेमत
"अनगिन संतानों के नेमत" विधा-ताटंक छन्द
भोर भए सूरज की लाली,झुकी घटाऍं काली है।
अनगिन संतानों के नेमत,हॅंसी खुशी हरियाली है।
अधरों में संगीत सुधा ले,गीत हवा क्यों गाती है।
श्याम सलोने को न रिझाने,वसुंधरा मुस्काती है।
केश भिगोकर भूमि भामिनी घण्टों रोज नहाती है।
प्रेम सुधा पीती मिट्टी से सौंधी सुगन्ध आती है।
वन उपवन में जन जीवन में,छाई छटा निराली है।
अनगिन संतानों के नेमत हॅंसी खुशी हरियाली है।
गड़गड की आवाज सुनें देखें जब भी बिजली कौंधे।
कान खड़ा कर सुनने को आतुर नन्हे नन्हे पौधे।
दिन-दिन बढ़ना खुद को गढ़ना सजीवता की तैयारी।
प्रतियोगिता सरीखा जीवन उस पर भी दुनियादारी।
प्रोत्साहन को पीपल दादा रोज बजाता ताली है।
अनगिन संतानों के नेमत हॅंसी खुशी हरियाली है।
नई कोपलें निकल चुकी है वृक्षों की शाखाओं में।
फूल खिलेंगे फल आयेंगे परहित है मन भावों में।
फसल लहलहा रही खेत में व्यापा हर्ष किसानों में।
नाम लिखा खाने वालों का सकल अन्न के दानों में।
गुरूपर्व क्रिसमस मानो तुम मानो ईद दिवाली है।
अनगिन संतानों के नेमत हॅंसी खुशी हरियाली है।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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