"आडम्बर"

विधा-छन्द


हे विद्वतजन शीघ्र बहा दो आडम्बर को नाली में।

भूख गरीबी परोसता है यह मानव की थाली में।


माना मानस सदियों से कुछ आडम्बर की आदी है।

पर यह सच है तन मन धन जन की इसमें बर्बादी है।


स्वस्थ रीति के संग चलो तुम समय खड़ा अभिनन्दन में।

प्रेम दया सद्भाव सुमत नित व्यवहृत हो जन गण मन में।


व्यर्थ गॅंवाओ समय न यूॅं आडम्बर की रखवाली में।

हे विद्वतजन शीघ्र बहा दो आडम्बर को नाली में।


वैज्ञानिकी विचार भरो बचपन के मन में बस्ते में।

मानवतावादी स्लोगन लिख टाॅंगो उसके रस्ते में।


प्रौढ़ युवा समृद्ध दिखें नित नैतिक नेक विचारों से।

ऋतुओं सा सहयोग मिले नित जनता को सरकारों से।


नववधुऍं पहले ही दिन से पॉंव धरें खुशहाली में।

हे विद्वतजन शीघ्र बहा दो आडम्बर को नाली में।


अच्छा होता दुर्योधन के कान पकड़ खींचा जाता।

बीच सभा में दु:शासन भी जोरदार थप्पड़ खाता।


सेव पेंड़ जब फले धतूरा दोष नहीं क्यों माली में।

हे विद्वतजन शीघ्र बहा दो आडम्बर को नाली में।


रचना-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

ahileshver.blogspot.com







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट