विषय-लकर-धकर
विधा-सार छंद
खेत डहर ले आ के घर मा, तुरते ददा तियारे।
दू दल हबरे हवय बेंदरा, जातो बेटा जा रे।
सुनते साठ पहिर के चप्पल, खेत डहर दउड़े हॅंव।
टीप छुवाउल कस नदिया के, खेत पहुॅंच तउॅंड़े हॅंव।
पिच्च पिच्च एती ले ओती, कूदय बिकट पिलारी।
एक हाथ मा उठा टप्प ले, पा लेवय महतारी।
आठ मॅंझोला एती-तेती, किचकिच किचकिच दउड़ॅंय।
छरियाये बॅंबरी मा चढ़के, कूदॅंय दउड़ॅंय तउड़ॅंय।
बइठे निधक करय जी खिसखिस, मेड़ उपर मा हुॅंड़का।
आवय अपन बेंदरा दल के, मालिक मुखिया मुॅंड़का।
कोरी दू कोरी ले जादा, बॅंटा बॅंटा के बगरे।
हुॅंड़कीमन मुॅंह देखत काहॅंय, लइका सो झन लग रे।
कोनो मन भाॅंटा मा बइठे, कोनो मिरचा खावॅंय।
कोनो मन बरबट्टी सेमी के पाना ला भावॅंय।
दउॅंड़ाये मा दउॅंड़ चङ्ग ले, पेंड़ उपर चढ़ जावय।
कोनो मसमोटिहा पपीता झाड़ी ला ढलगा दय।
कोहा जेन सोझ मा जावय, खुद ला तुरत हटा लय।
मुक्काबाज सहीं मुॅंह माथा, पक्का अपन बचा लय।
हुय्या हुय्या कहत कहत मुॅंह,माथा मोर पिरागे।
कोहा मारत मारत थक के, बेंवा पाॅंव थिरागे।
ददा ढेखरा मा गुलेल ला, गेये हे अरझा के।
कोहा फॅंसा फॅंसा गुलेल मा, मारॅंव हाथ भॅंवा के।
बाजिस हे गुलेल के गोली, कान डहर जब भन्न के।
भागिस उहू जोर से जे हर, जात रहिस मन-ठन्न के।
आ के हउदी के पानी मा, हाथ पाॅंव मुॅंह धोथॅंव।
पाॅंव डहर ला देखत हाॅंसत, कहिथॅंव सार सिधोहॅंव।
पॉंव म हे बाई के चप्पल, हसॅंव नहीं ता का रे।
बात हॅंसी के लाइक होगे, लकर-धकर के मारे।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
ahileshver.blogspot.com
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