मत्तगयंद सवैय्या छंद

पैजनिया ल बजावत रेंगत खोर गली ल जगावत गोरी।
हाँसत बोलत ठोलत जावत हे कनिहा लचकावत गोरी।
सेंट लगे महँगा कपड़ा तन अब्बड़ हे ममहावत गोरी।
सुग्घर हे सम्हरे पहिरे मुँह देखत मा सरमावत गोरी।

सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

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