दुर्मिल सवैय्या
सुनले बरखा झन तो तरसा बिन तोर कहाँ मन हा हरषे।
जल के थल के घर के बन के बरखा बिन जीव सबो तरसे।
नदिया तरिया नल बोरिंग मा भरही जल कोन बिना बरसे।
जिनगी कइसे चलही सबके अब आस सुखावत हे जर से।
-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
सुनले बरखा झन तो तरसा बिन तोर कहाँ मन हा हरषे।
जल के थल के घर के बन के बरखा बिन जीव सबो तरसे।
नदिया तरिया नल बोरिंग मा भरही जल कोन बिना बरसे।
जिनगी कइसे चलही सबके अब आस सुखावत हे जर से।
-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
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