मदिरा सवैय्या छंद

सुग्घर शब्द विचार परोसव हाँथ धरे हव नेट बने।
ज्ञान बतावव गा सच के सब ला सँघरा सरमेट बने।
झूठ दगा भ्रम भेद सबे झन के मुँह ला मुरकेट बने।
मानस मा करतव्य जगै अधिकार मिलै भर पेट बने।

रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
             28/08/2017

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