सुखदेव सिंह अहिलेश्वर "अँजोर"के दोहे

[8/21, 2:58 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दोहा

अँगना बारी डीह मा,या डोली के मेंड़।
भुँइया के सिंगार बर,सिरजालौ दू पेंड़।

गरुवा के दैहान मा,या तरिया के पार।
झाड़ लगावत साठ जी,रूँधौ काँटा तार।

बड़ महिमा हे पेंड़ के,कोटिन गुण के खान।
कर सेवा नित पेंड़ के,खच्चित हे कल्यान।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर "अँजोर"
[8/21, 3:18 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: मोर परिचय:--

बेटा दाऊलाल के,मातु सुमित्रा मोर।
नाव धरे सुखदेव सिंह,मोरे बबा अँजोर।

देख मया माँ बाप के,उँकर मया के डोर।
आँखी के सँउहे रखैं,निकलन नइ दैं खोर।

स्कूल रहै ना गाँव मा,घर मा ददा पढ़ाय।
कोरा मा बइठार के,सिलहट कलम धराय।

बूता करवँ पढ़ाय के,गुरुजी परगे नाँव।
झिरना के भंडार मा,गोरखपुर हे गाँव।

लिखत रथवँ मन भाव ला,नान्हे बुद्धि लगाय।
होय कृपा सतनाम के,सो गुरुदेव मिलाय।

करिन निगम गुरुदेव मन,बिनती ला स्वीकार।
फोन करिस सर हेम हा,होइस खुशी अपार।

पाये हवँ सानिध्य ला,तरसत हवयँ हजार।
जनकवि कोदूराम के,सूरुज अरुण कुमार।

               सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
[8/21, 3:21 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: "होली"

शहर नगर अउ गाँव मन,होगे हे तइयार।
होली ला परघाय बर,सम्हरे हाट बजार।

पिचका रंग गुलाल के,जघा जघा भरमार।
लइका संग सियान के,रेम लगे हे झार।

घर अँगना ममहात हे,चूरत हे पकवान।
मुठवा खुरमी ठेठरी,भजिया चना पिसान।

टोली निकले खोर मा,अलग अलग हे रंग।
कोनो मन सिधवा लगैं,कोनो मन हुड़दंग।

माथा टीका लगाय के,छूवत हावय पाँव।
अइसन सुग्घर दृश्य ला,देख सहेजे गाँव।

छोड़व मन के भेद ला,टोरव भ्रम के जाल।
मन हिरदे चतवार के,पोतव रंग गुलाल।

मानवता सिरजाय बर,आथे सबो तिहार।
मनखे पन ला छोड़ के,लड़ना हे बेकार।

सखियन मन के बीच मा,उत्तर पाय सवाल।
आँख कान ला छोड़ के,रँगले गाल गुलाल।
[8/21, 3:39 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: "बासी"

भइया नांगर जोत के,बइठे जउने छाँव।
भउजी बासी ला धरे,पहुँचे तउने ठाँव।

भइया भउजी ला कहय,लउहा गठरी छोर।
लाल गोंदली हेर के,लेय हथेरी फोर।

बासी नून अथान ला,देय गहिरही ढार।
उँखरु बइठ के खात हे,मार मार चटकार।

भइया भउजी के मया,पुरवाही फइलाय।
चटनी बासी नून कस,सबके मन ला भाय।


"दारू"

दारू हमर समाज के,टोरत हावय रीढ़।
तभो मान मरजाद ला,लागत नइहे चीढ़।

पीके कहूँ शराब तयँ,धन करबे बरबाद।
बाई गारी देय ही,खिसियाही अवलाद।

तोर नशा के संग मा,जाही छूट परान।
समय रहत तयँ चेत जा,इही बबा के ज्ञान।

पीये कहूँ शराब तयँ,लोटा थारी बेंच।
बेटा बूढ़त काल मा,तोर चपकही घेंच।

कोन जनी का सोंच मा,जागत सारी रात।
खाँस खाँस के डोकरा,बीड़ी ला सिपचात।

गाँव गली मा आज कल,मिलथे नशा तमाम।
लइकन संग सियान मन,छलकावत हें जाम।


डिस्पोजल बोतल धरे,बइठे नरवा तीर।
आखिर युवा हमार गा,जाही कतका गीर।
[8/21, 4:06 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दोहा:-

बउरत खानी चेत कर,पानी गजब अमोल।
बिन पानी जिनगी नही,जीबे कइसे बोल।।

सुन संगी एक मशविरा,त्याग अहं अभिमान।
धरले गुरु के गोठ ला,बइठ लगा ले ध्यान।।

सक्षम समरथ सैन्य बल,बादर लेवय नाप।
दुनिया देखत आज हे,भारत के परताप।

काबर किम्मत नइ करै,अपन बबा के गोठ।
बदरा बर किँजरत फिरै,छोड़य दाना पोठ।

बेटा काबर नइ सुनय,अपन ददा के बात।
किँजरत फिरथे खोर मा,नाहक खाथे लात।

नींद गँवागे बाप के,दुरिहागे सुख चैन।
रोवत रहिथे रात भर,बोहत रहिथे नैन।

दाई समझावत थके,बाप घलो गै हार।
बड़े ददा थकगे कका,थकगे सब परिवार।

नाव हवय सुखदेव सिंह,गोरखपुर हे गांव।
हाथ जोर बिनती करव,रखहु अशिष के छाँव।

मोर बुता शिक्षण हवै,नइहे दूसर काम।
नान मून लिखत रथौं,बड़का नइहे नाम।

पुरवा महक बिखेरही,सुरता आही कंत।
हटही पहरा जाड़ के,आगे नवा बसंत।।

चारो कोती फूल के,गंध हवा मा छाय।
पुरवाही के संग मा,तन मन हा ममहाय।


"अँगना"

अँगना ले घर हा फबे,अँगना घर के नाक।
आव जवइया बइठ ले,कहिके पारै हांक।

चिक्कन चाँदन राखले,अँगना तुलसी दूब।
देख मगन हो जाय मन,बइठ सुहावै खूब।

मदिरा महुरा एक हे,एक हवय गा रास।
तन मन धन के होत हे,इँकरे कारन नाश।

"भाजी"

खाले भाजी करमता,भाजी मा हे खास।
गुणकारी हे आँख बर,संगे सुघर मिठास।

भाजी रांधौ चेंच के,डार अमारी पान।
गुणकारी हे पेट बर,बात बबा के मान।

भाजी उरला हा घलो,बड़ गुणकारी आय।
नस मा दउड़त खून के,शक्कर ला हटियाय।

"लोटा"

घर आये महिमान ला,लोटा मा जल देव।
आसन मा बइठार के,राम रमउवा लेव।

शौचालय घर घर रहै,बड़ सुग्घर अभियान।
लोटा धरके जाव झन,बात सियानी मान।

खुला शौच के प्रश्न मा,काबर हावव मौन।
लोटा धरके जाय बर,छोड़व गा सिरतोन।

टठिया लोटा बेच के,पीयै दारू मंद।
ते प्रानी के जान ले,दिन बाचे हे चंद।
[8/21, 4:07 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दोहा

धरे कुदारी खेत मा,देवत रहिथे चेत।
जाके तै हा देख ले,हाँसय ओखर खेत।

लेके गैंती हाथ मा,कोड़य तीरे तीर।
देखय फोरा हाथ के,बेटा होय अधीर।

राँपा कुदरा ला धरे,खेत ददा हा जाय।
घर के चिंता छोड़ के,,बेटा हा इतराय।

आज सँदेशा आय हे,अंतस जागे पीर।
सुरता मा पति देव के,नैन बहावै नीर।

हँसी खुशी मा काट लौ,जिनगी के दिन चार।
बड़ मुश्किल मा पाय हन,झन होवय बेकार।

लाँघन भूँखन पेट हा,पूछय एक सवाल।
का जिनगी के मोल हे,का जिनगी के हाल।

अब तो तोरे हाथ हे,ये जिनगी हा मोर।
हिरदे मा बइठार के,तन मन मा रस घोर।

करम ठठावय आदमी,जिनगी बइठे रोय।
सकल पदारथ हे इँहे,बिन जांगर का होय।

पढ़व लिखव गा ध्यान से,अपन भविस ला देख।
आखर मा ओ गुन हवै,सुधरत ब्रह्मा लेख।

करम करे ला छोड़ के,सोवत हे दिन रात।
सुन बेटा बिन काम के,कइसे बनही बात।

करम किसानी एक हे,माँगय श्रम के बूँद।
महिनत कोती चेत कर,आँखी ला झन मूँद।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:07 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: लोकगीत

सँगवारी के गोठ जब,लेवय मन ला जीत।
बइठ तरइया पार मा,झड़य ददरिया गीत।

मया अपन मनमीत ला,पूछय मिलन सजोग।
उत्तर प्रश्न के गीत ला,कहयँ ददरिया लोग।

समरसता के गीत हा,पंथी गीत कहाय।
माँदर बाजय ताल मा,नाचयँ गोड़ मिलाय।

श्री गुरु घासीदास के,सत्य सार व्यवहार। 
पंथी मंगल गान मा,दिखै इही संस्कार।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:08 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: छत्तीसगढ़ दर्शन

जंगल सोनाखान हे,जोंक नदी हे तीर।
चरण बबा के धोय बर,निरमल बोहय नीर।

जोंक नदी के तीर मा,बसे गिरउदा गांव।
बाबा घासीदास के,तपो भूमि अस ठांव।

अँवरा धँवरा पेड़ हे,छाता सही पहाड़।
गुरु के दरशन पाय बर,मारय शेर दहाड़।

पावन भूमि गिरउद के,महिमा अगम अपार।
सउँहे अमरित कुंड ले,बोहय अमरित धार।


महिमा भोरम देव के,फइले चारो ओर।
खजुराहो कहलात हे,नागवंश के शोर।

राजा भोरम राज हा,बनवाये मंदीर।
किरपा भोलेनाथ के,समझ लेव मतिधीर।

डोंगरगढ़ बमलेश्वरी,पावन बपरित ठाँव।
दर्शन बर सब जात हें,तहूँ लिखाले नाँव।

सिरपुर देखव जाय के,संगी मोर मितान।
पहिली मंदिर ईंट के,हावय गा परमान।

बस्तर कोटमसर गुफा,देखब मा हे खास।
पाँव परे प्रभु राम के,समय रहिस बनवास।

हरहिन्छा बघवा फिरय,मारत रहय दहाड़।
आय अचानकमार मा,डर लागत हे ठाड़।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:10 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: "अँजोर" के दोहे

आवै सगा बिहाव मा,सुग्घर रीत निभाव।
धोती डारौ खाँध मा,माथा पाँव लगाव।

लुगरा पहिरे लाल के,टिकली चूरी लाल।
गोड़ महाउर लाल हे,मुहरंगी हे लाल।

टूरा मेला जाय बर,बंडी नवा सिलाय।
पहिनत ओला देख के,नोनी घलो रिसाय।

भैया बर भउजी हमर,काबर हे खिसियात।
मन भीतर के बात ला,पइरी हा अलखात।

साँटी सुग्घर पाँव बर,बेटी हा मँगवाय।
जुच्छा लहुटै बाप हा,महतारी कुम्हलाय।

दीदी पहिरे कान मा,जाँवर जाँवर सोन।
भीतरहिन हर बात मा,मारत हावय टोन।

सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:14 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: नख-सिख सिंगार

बादर कस घपटे हवय,करिया चूँदी तोर।
सुग्घर बने गँथाय हे,बेनी हा लमछोर।

माँघ भरे सेंदूर ले,काजर नैन लगाय।
चाकर टिकली माथ के,सबके मन ला भाय।

फूली पहिरे नाक मा,झुलै कान मा झूल।
बेनी उप्पर घाम मा,चमकय बेनी फूल।

रुपिया सूँता ला बने,गर मा अपन सजाय।
खोंचे दौना कान मा,महर महर ममहाय।

फभै नाँगमोरी बने,अँइठी चूरी साँथ।
रेंगय बने हलाय के,सुग्घर गोरी हाँथ।

लुगरा हरियर रंग के,पहिरे हे मुटियार।
रेंगत हे लहराय के,उल्टा पल्ला मार।

लाल महेंदी हाथ मा,चंदा कस हे गोल।
लाली होंठ लगाय के,बोलय गुरतुर बोल।

नवलरिया करधन फभे,उज्जर तन मा तोर।
गोड़ महाउर लाल के,देखत हावय खोर।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:15 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: "सुरता"

सोवत नइहौ रात भर,सुरता आथे तोर।
तोर कहे मा निंद हा,परछो लेथे मोर।

सुरता आथे रात दिन,होगे आँखी लाल।
फोन धरे हे हाँथ मा,पूछत नइहे हाल।

सुरता आथे के नही,ओला मोरो नाँव।
दया मया दाई ददा,ये घर कुरिया ठाँव।

मन तो होथे रोज गा,जाके हाल सुनाँव।
बिना बलाये तीर मा,कइसे के मय जाँव।

कोन जनी खिसिया दिही,जाहूँ सोझे गाँव।
ओखर मन मा काय हे,दीदी करा पूछवाँव।

सुरता बेटी के करय,महतारी हा रोज।
फोन लगाके पूछ लय,कखरो करै न खोज।


-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:15 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: नारी

बात रखिन पुरजोर जी,घासीदास महान।
गोठ गँवारी छोड़ के,कर नारी सम्मान।

सुनिन गुनिन गुरु मंत्र ला,मानिन बात समाज।
बिन नारी सम्मान के,काल बनै ना आज।

बाबा के बानी बचन,करदिस सुग्घर भोर।
नारी मन जुरके कहै,हाँथ दुनो ठन जोर।

तही हमर दाई ददा,गुरु भाई  परिवार।
तोरे किरपा ले बबा,जिनगी रंग तिहार।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:16 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: गौरैय्या

कमती होगे छानही,परछी घला नँदाय।
गौरैय्या हा खोंदरा,कामा अपन बनाय।

बइठे देखैं सीरियल,संग बहू के सास।
लहकत गौरैय्या हवै,कोन बुझावै प्यास।

सुक्खा परगे बावड़ी,बोरिंग घला अटाय।
गौरैय्या पानी बिना,कइसे गुजर चलाय।

गौरैय्या के झुण्ड मन,फुदकैं अँगना खोर।
कहाँ नँदागैं आज कल,दिखयँ नही निपोर।

सुनके बोली निक लगे,गौरैय्या चिंचिहाय।
आरो पावै पाँव के,फुर्र फुर्र उड़ जाय।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:16 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: मयँ

तोर मोर के हाट मा,मयँ बइठे चँहुओर।
हावै कती हमार हा,खोजत हवे अँजोर।

मयँ के लगे दुकान हे,मयँ के सबे समान।
बेंचत हे मालिक बने,काहे के पहिचान।

चिन्हा अलग बनाय बर,मयँ के चुपरे रंग।
कपड़ा बपुरा का करय,ओखर बदले ढंग।

मयँ के पेल ढपेल मा,होही भागम भाग।
तभे हमर सतगुरु कहय,छोड़ौ मयँ के राग।

मया धरौ मन भीतरी,मिलही गा आराम।
मयँ के चक्कर छोड़ के,लेवौ प्रभु के नाम।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:17 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दोहा

करलाई ला देख के,कृपा करिस हे आज।
सरवर भर पानी धरे,आइस हे महराज।

बिन बादर बरसात ले,भिंजगे तन मन मोर।
घर अँगना छत संग मा,जुड़ बोलत हे खोर।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:17 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दोहा

आगी अँगरा कस लगे,जेठ दुपहरी घाम।
घर बाहिर दूनो जघा,मिलय नही आराम।

कहूँ निकल जौ खोर मा,चटचट जरथे पाँव।
मूड़ कान हर तीपथे,लहकै जीव परान।

आनाकानी मन करै,कहूँ जाय बर होय।
खच्चित बूता हे तभो,जाये मा मन रोय।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:17 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दोहा

देख लजावै जेब हा,बड़ मँहगी बाजार।
जुच्छा कइसे जाँव जी,घर मैं मन ला मार।

गोसइनिन खिसिया जही,जुच्छा झोला देख।
काबर कइसे पूछही,लीही गजब सरेख।

घर मा हावय खोइला,साध लगत हे आज।
रँधवाहौं कह बोल के,बाँच जही जी लाज।

काँही तरकारी नही,नइहे घर मा दार।
जीमी काँदा खोइला,राँध मही ला डार।

किसिम किसिम के खोइला,रँग रँग के आथान।
आँड़े अँतरे खाय मा,बड़ गुणकारी जान।

🙏🏻सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:18 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दोहा

करुहा बोली बोल के,झन मारौ जी बान।
गुरतुर भाखा संग मा,पाव सदा सम्मान।

सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
[8/21, 4:18 PM] सुखदेव सिंह अहिलेश्वर: दोहा

बंगाला ला देख के,सोंचत हावै सेव।
सदा गरीबी नइ रहय,दुरिहा हो गय भेव।

इँहा टमाटर मूड़ धर,बइठे हावय देख।
बारम्बार निहारथे,हाँथ करम के रेख।

भाव गिरा के रे मना,कोनो ला झन बोल।
कोन कती बर ढूलही,धरती हावय गोल।


सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

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